शारदीय नवरात्री हिंदुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। नवरात्री का पर्व वर्ष में चार बार आता है। पौष, चैत्र, आषाढ़ और आश्विन मास में, प्रतिपद से नवमी तक, नवरात्री का पर्व मनाया जाता है। जिसमें से चैत्र और आश्विन माह में पड़ने वाली नवरात्री को विशेष रूप से मनाया जाता है। इस वर्ष शारदीय नवरात्री का त्यौहार सोमवार, 26 सितम्बर से बुधवार, 05 अक्टूबर 2022 तक मनाया जायेगा।
नवरात्री का शाब्दिक अर्थ होता है “नौ रातें”। इन रातों में देवी के नौ रूपों को पूजा की जाती है। दसवाँ दिन दशहरा के रूप में मनाया जाता है। भारत में नवरात्री का त्यौहार विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। गुजरात में नवरात्री का भव्य रूप देखने को मिलता है। यहाँ देवी के सम्मान में भक्ति प्रदर्शन के रूप में आरती से पहले ‘गरबा’ किया जाता है और बाद में ‘डांडिया’ समारोह होता है। डंडियां और गरबा में स्त्री और पुरुष सामान रूप से नाचते और गाते है।
पश्चिम बंगाल में नवरात्रि का पर्व दुर्गा पूजा के नाम से प्रचलित है। बंगाली दुर्गा पूजा का बहुत ही उत्साह से मानते है। जगह-जगह दुर्गा पूजा पंडाल सजाये जाते है। जहाँ नियमित पूजा पाठ और भंडारे का आयोजन किया जाता है। यह आयोजन लगातार नौ दिनों तक चलता। तत्पश्चात दशमी को माता दुर्गा का विसर्जन कर दिया जाता है। दशमी के बीस दिन बाद दीपावली का त्यौहार मनाया जाता है।
नवरात्री 2022 में नौ देवी स्वरूपों की पूजा तिथि और देवी स्वरुप का अर्थ
शारदीय नवरात्री 2022 तिथि और नवरात्री पूजा विधि
माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा का पर्व है नवरात्री। इस बार नवरात्री 26 सितम्बर दिन सोमवार से 05 अक्टूबर दिन बुधवार तक है। शारदीय नवरात्रि में किस दिन किस देवी की पूजा की जाती है इसका उल्लेख हमने ऊपर किया हुआ है। नवरात्री में नौ दिनों के व्रत का भी प्रचलन है। जो लोग नौ दिनों का व्रत रखने में असमर्थ होती है, वो प्रथम और अष्टमी का व्रत रख सकते है। नवरात्री में शक्ति के नौ रूपों की पूजा करने से सभी तरह की समस्याएं दूर हो जाती है। सफलतापूर्वक व्रत पालन करने से जीवन में सुख, शांति और समृद्धि बानी रहती है।
नवरात्री की सुबह जल्दी उठ कर स्नान करें। फिर अपने घर एवं मंदिर का गंगाजल से शुद्धिकरण करें। पूर्व दिशा की तरफ मुख करके नई जनेऊ धारण करें और स्वच्छ पीले या लाल वस्त्र पहने। मंदिर के समक्ष लाल आसन बिछाकर उस पर बैठ जाएं। मंदिर में मिट्टी की चौकी बनाये या फिर एक साफ़ सुथरी चौकी रखें। गंगाजल से चौकी को पवित्र करने के बाद उसपर लाल या पीला कपडा डालें। चौकी के समक्ष किसी मिट्टी के बर्तन में मिटटी डालकर ज्वार के बीज बो दें।
तत्पश्चात चौकी पर श्री गणेश एवं माँ दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें। हाथ में शुद्ध जल लेकर संकल्प करें और विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की पूजा करे। श्री गणेश जी को जनेऊ धारण कराएं। रोली, हल्दी की गांठें, अक्षत, सुपारी, पान, इत्र,पुष्प, फल, मिष्ठान, साबुत मूंग, प्रसाद, पंचामृत, पंचमेवे आदि पूजा सामग्री से पूजा करें और भोग लगाएं। पूजा के दौरान निम्न मंत्र का उच्चारण करें। पूजा उपरांत कलश या घटस्थापना करें।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्रियम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते ।।
नवरात्री कलश/ घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
कलश स्थापना दिनांक – सोमवार, 26 सितम्बर 2022
घटस्थापना शुभ मुहूर्त – सुबह 06 बजकर 24 मिनट से सुबह 07 बजकर 15 मिनट तक और दोपहर 12 बजे से 01 बजे के मध्य
कलश स्थापना अवधी – 01 घंटा 41 मिनट
घटस्थापना के लिए शुभ नक्षत्र – पुष्या, उत्तराफाल्गुनी, उत्तराषाढ़, उत्तराभाद्रपद, हस्ता, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, मूल, श्रवण, धनिष्ठा और पुनर्वसु
कलश/ घटस्थापना के नियम
घटस्थापना/ कलश के लिए आवश्यक सामग्री
कलश स्थापना के निम्न सामग्रियों की आवश्यकता होती है।
- सप्त धान्य (जौ, गेंहू, चावल, तिल, कंगनी, उड़द और मूंग)
- मिट्टी की थाल या चौड़े मुँह का बर्तन
- कलश
- गंगाजल (उपलब्ध न होने पर शुद्ध सादा जल)
- सुपारी
- जटा वाला नारियल
- अक्षत
- आम या अशोक के पत्तों की टहनी
- लाल वस्त्र
- पुष्प
कलश/ घटस्थापना विधि
नवरात्री पर घटस्थापना निम्न विधि से करनी चाहिए।
- सर्वप्रथम मिट्टी की थल या बर्तन में सप्त धान्य को रखके फैला लें।
- अब कलश में गंगाजल या शुद्ध जल भरकर उसे मिट्टी के पात्र पर रखें।
- कलश की गर्दन में कलावा बंधे और उसके ऊपरी भाग पर आम या अशोक के पत्ते रखें।
- नारियल पर पहले कलावा और फिर ऊपर से लाल कपडे में लपेटकर कलश के ऊपर पत्तों के बीच में रखें।
- इसके उपरांत कलश की अक्षत, पुष्प आदि से पूजा करें और माँ दुर्गा का आह्वान करें।
नवरात्री पर अखंड ज्योति कैसे प्रज्वलित करें और उसका महत्त्व
कलश या घटस्थापना के बाद अखंड ज्योति प्रज्वलित की जाती है। नवरात्री के सभी नौ दिनों तक घरों और मंदिरों में अखंड ज्योति जलाई जाती है। अखंड ज्योति जलने से पहले भगवान श्री गणेश, भगवान शिव और माँ दुर्गा का ध्यान करें और निम्न मंत्र का उच्चारण करें।
‘ओम जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते’
मंत्रोउच्चारण पश्चात अखंड ज्योति जलाएं। अखंड ज्योति जलने के लिए गाय के देसी घी का उपयोग करें। घी उपलब्ध न होने की स्थिति में सरसों या तिल के तेल का उपयोग करें। ज्योतिशास्त्र अनुसार, अखंड ज्योति माँ दुर्गा के दाईं ओर रखी जाती है। सरसों या तिल के तेल का दीपक है तो माँ दुर्गा के बाईं और रखें।
अखंड ज्योति का दीपक निरंतर नौ दिन चौबीसों घंटे जलाया जाता है। इस बात का खास ध्यान रखना चाहिए की अखंड ज्योति 9 दिनों में एक पल के लिए भी बुझने न पाएं। इसके लिए बत्ती नौ दिनों के हिसाब से लम्बी बनानी जाहिए। अगर फिर भी बत्ती बदलना पड़े तो पहले नई बत्ती लगा दें फिर पुरानी को निकालें। नौ दिन बाद भी दीपक को बुझाएं नहीं बल्कि उसे स्वयं बुझने दें।
नवरात्रि अखंड ज्योति के लाभ
अखण्ड ज्योत जलने से घर पर से शनि का कुप्रभाव कम हो जाता है। घर में सुख, शांति एवं समृद्धि बानी रहती है और घर के सभी सदस्यों का स्वस्थ अच्छा बना रहता है। घर में अखंड ज्योत जलने से बुरी और नकारात्मक शक्तियां दूर रहती है और सकारात्मक शक्तियों का प्रभाव बढ़ता है। जिससे घर में धन और धान्य की कभी कमी नहीं पड़ती। व्यवसाय में लाभ होता है। माँ दुर्गा की कृपा से जीवन के सारे कष्ट दूर होते है।
नवरात्री में कन्या पूजन तिथि और कन्या भोज विधि
कन्या पूजन नवरात्री का अभिन्न अंग है। नौ दिन तक माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करने के बाद नवमीं को नौ कन्याओं को भोज कराया जाता है। कन्या भोज के बाद ही नवरात्री की पूजा सम्पूर्ण मानी जाती है। कन्या भोज नवरात्री की अष्टमी और नवमी दोनों ही तिथियों पर कराया जा सकता है। नवरात्री पर कन्या भोज करवाने से देवी अन्नपूर्णा के साथ महालक्ष्मी की कृपा भी प्राप्त होती है।
कन्या भोज के 2 से 11 वर्ष की 09 कन्याओं और 01 बालक को आमंत्रित करना चाहिए। ऐसा इसलिए क्यूंकि दो वर्ष की कुमारी, तीन वर्ष की त्रिमूर्ति,चार वर्ष की कल्याणी, पांच वर्ष की रोहिणी, छः वर्ष की बालिका, सात वर्ष की चंडिका, आठ वर्ष की शाम्भवी, नौ वर्ष की दुर्गा और दस वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती है। बालक को बटुक भैरव और लांगूरा (हनुमान जी) का रूप माना जाता है।
भोज के लिए घर पर आने वाली कन्याओं का पुष्प वर्षा के साथ स्वागत करें। सभी कन्याओं और बालक के पाँव पखार करके उन्हें स्वस्छ स्थान पर बैठाएं। कन्याओं को कुमकुम और अक्षत का तिलक लगाएं और पुष्प अर्पण करें। फिर सभी को खीर-पूड़ी, हलवा-चना इत्यादि का भोजन कराएं। भोजन उपरांत सभी के चरण चुकार आशीर्वाद लें और उन्हें दक्षिणा देकर विदा करें। ऐसा करने में माँ दुर्गा की कृपा आप पर सदैव बनी रहेगी।
शारदीय नवरात्री का महत्व

शारदीय नवरात्री प्रमुख कथा
रामायण में लंका युद्ध में विजय प्राप्ति के लिए ब्रह्माजी ने श्रीराम को देवी चंडी की आराधन करने को कहा। देवी चंडी की पूजा और हवन हेतु दुर्लभ एक सौ आठ नीलकमल की व्यवस्था की गई। रावण को इसकी भनक लग गई और उसने पूजा स्थल से अपनी मायावी शक्ति से एक नीलकमल गायब कर दिया। पूर्ण आहुति के दौरान एक नीलकमल कम होने की वजह से श्रीराम का संकल्प टूटता-सा नजर आने लगा। पूजा में कमी से देवी चंडी के रुष्ट होजाने का भय था। दुर्लभ नीलकमल की तत्काल व्यस्वस्था असंभव थी। तब भगवान राम को सहज ही स्मरण हुआ कि मुझे लोग ‘कमलनयन नवकंच लोचन’ कहते हैं, तो क्यूँ न संकल्प पूर्ती के हेतु एक नेत्र अर्पित कर दिया जाए। जैसे ही श्रीराम ने बाण से अपने नेत्र निकलने चाहे वैसेही देवी चंडी प्रगट हुई और कहा – राम मैं प्रसन्न हुई और उनको विजयश्री का आशीर्वाद दिया।
हनुमान जी का ब्राह्मण बालक का रूप
इसी दौरान, दूसरी ओर रावण भी विजय प्राप्ति हेतु देवी चंडी की पूजा प्रारम्भ कर दी। इस बात को इंद्रा देव ने पवन देव के माध्यम से श्रीराम के पास पहुंचाई और परामर्श दिया कि कुछ ऐसा करें जिससे चंडी पाठ भी पूर्ण हो जाये और रावण को उसका फल भी न मिले। इस कार्य को पूर्ण करने की जिम्मेदारी श्री हनुमान जी को सौंपी गई। ब्राह्मण बालक का रूप धरकर हनुमान जी चंडी पाठ में यज्ञ कर रहे ब्राह्मणों की सेवा में लग गए। ब्राह्मण बालक की निःस्वार्थ सेवा से प्रसन्न होकर ब्राह्मणों ने उससे एक वरदान मांगने को कहा।
इस पर हनुमान जी ने विनम्रतापूर्वक कहा – प्रभु, यदि आप प्रसन्न है तो जिस मंत्र से आप यज्ञ कर रहे है उसका एक अक्षर मेरे कहने पर बदल दीजिये। ब्राह्मण उनकी बात का रहस्य समझ नहीं सकें और तथास्तु कह दिया। तब हनुमान जी ने कहा मंत्र में जयादेवी… भूर्तिहरिणी में ‘ह’ के स्थान पर ‘क’ उच्चारित करें, यही मेरी इच्छा है। भूर्तिहरिणी का अर्थ होता है प्राणियों की पीड़ा हरने वाली और ‘करिणी’ का अर्थ हो गया प्राणियों को पीड़ित करने वाली। इस मंत्र उच्चारण से देवी रुष्ट हो गईं और रावण का सर्वनाश करवा दिया।
नवरात्री से जुडी महिषासुर वध कथा
पौराणिक कथा अनुसार, महिषासुर नामक एक राक्षस हुआ करता था। उसने एकाग्र मन से कठोर तप करके देवताओं को उसे वरदान देने पर बाध्य कर दिया। वरदान से अविजयी हुए महिषासुर ने राक्षसों के साम्राज्य का विस्तार शुरू कर दिया। उसने देवताओं को पराजित करके स्वर्ग पर अधिकार प्राप्त कर लिया। महिषासुर ने सूर्य, इन्द्र, अग्नि, वायु, चन्द्रमा, यम, वरुण और अन्य देवताओं के सभी अधिकार छीन लिए। महिषासुर ने देवताओं को स्वर्ग से निष्काषित करके पृथ्वी पर विचरण करने पर मजबूर कर दिया।
तब महिषासुर के दुस्साहस से क्रोधित होकर देवताओं ने देवी दुर्गा की रचना की। देवी दुर्गा की रचना में देवताओं ने सामान बल लगाया था। महिषासुर के नाश के लिए सभी देवताओं ने अपने अपने अस्त्र-शस्त्र देवी दुर्गा को प्रदान किया। देवी दुर्गा और महिषासुर में भयंकर युद्ध हुआ। यह युद्ध पूरे नौ दिन चला। अंततः देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध कर महिषासुर-मर्दिनी कहलायीं। इसी खुशी के उपलक्ष में दशहरा का त्यौहार मनाया जाता है।