सावन और भगवन शिव नीलकंठ

सावन महीने का महत्त्व, भगवान शिव पूजा विधि और मुख्य त्योहार

भगवान शिव के सबसे प्रिय सावन महीने की शुरुआत इस साल 14 जुलाई 2022 को हो रही है जिसमे हिन्दू धर्म के कई मुख्य त्योहार होते है । हिन्दू पंचांग के अनुसार सावन साल का पाँचव महीना है। जिसकी शुरुआत आषाढ़ मास की पूर्णिमा से होता है। इस साल सावन का महीना 30 दिनों का है। सावन महीने का अंतिम दिन 12 अगस्त 2022 को पड़ेगा। श्रावण के पूरे माह धार्मिक उत्सव होते रहते है। सावन माह में भगवान शिव के सभी ज्योतिर्लिंगों से रथ यात्रा निकली जाती है।

 

सावन महीने का महत्त्व (Sawan mahine ka mahatva)

शिव जी को श्रावण का देवता कहा जाता है। शिवभक्तों के लिए इस महीने का अपना अलग ही महत्त्व है। इस माह शिव भक्त भगवान शिव की विभिन्न तरीकों से पूजा अर्चना करते है। जल अभिषेक, रुद्राभिषेक, पवित्र नदियों में स्नान, व्रत, कावड़ यात्रा आदि धार्मिक कार्यक्रम पूरे महीने चलते है। माना जाता है की इस माह भगवान शिव की पूरे श्रद्धा से पूजा अर्चन करने पर आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है। शिवभक्तों का शिव मंदिरों में ताँता लगा रहता है। पूरा देश इस त्योहार को बहुत ही उत्साह से मनाता है।

सावन माह से जुडी पौराणिक एवं धार्मिक कथाएं

सावन माह को हिन्दू पंचांग में सर्वोत्तम माह माना गया है। सावन महीने के महत्त्व को हम कुछ पौराणिक और धार्मिक कहानियों के माध्यम से समझ सकते है। सावन माह को विशेष बनानी वाली कहानियों का उल्लेख नीचे किया गया है।

भगवान शिव और माता पर्वती का पुनर्मिलाप

मान्यता है की भगवान शिव को सावन से विशेष लगाव है। इसका कारण उनका अपनी भार्या से पुनर्मिलाप है। कथाओं के अनुसार, भगवान शिव की पहली भार्या, दक्ष पुत्री माता सती ने क्रोध में आकर अपने देह का त्याग कर दिया था। जिसके बाद उन्होंने हिमालय राज के घर पार्वती के रूप में पुनर्जन्म लिया। भगवान शिव को दोबारा पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने सावन माह में कठोर तप किया। जिससे प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनकी मनोकामना पूर्ण की। अपनी भार्या के दोबारा मिलकर भगवान शिव अत्यंत प्रसन्न हुए। इसीलिए इस माह कुंवारी कन्याएं अच्छा पति पाने के लिए व्रत रखती है।

भगवान शिव का पृथ्वी पर आगमन

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव प्रत्येक वर्ष सावन के महीने में पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल जाते है। ससुराल आगमन पर शिवजी को अत्यंत प्रसन्नता होती है। वहां उनका स्वागत अर्ध्य और जलाभिषेक से किया जाता है। इसीलिए सावन माह में अर्ध्य और अभिषेक को महत्वपूर्ण बताया गया है। पृथ्वी वासियों के लिए भी शिव कृपा पाने का ये सबसे अच्छा अवसर होता है।

समुन्द्र मंथन और सावन माह का सम्बन्ध

समुन्द्र मंथन हिन्दू धर्म की प्रचलित धर्मपौराणिक कथा है। समुन्द्र मंथन की शुरुआत सावन माह में ही होती है। मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में ग्रहण करके सृष्टि को बचाया था। जिसके फलस्वरूप उनका कंठ नीला पड़ गया। इसी से उनका नाम ‘नीलकंठ महादेव’ पड़ा। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवी देवताओं ने उनपर जल डाला। इसलिए शिव पूजन में जलाभिषेक का अपना अलग महत्त्व है। यही कारण है कि सावन मास में शिवलिंग पर जल चढाने से विशेष फल की प्राप्ति होती है।

भगवान शिव का सृष्टि का पालनहार बनना

शास्त्रों के अनुसार वर्षा ऋतु के चौमासा में भगवान विष्णु योगनिद्रा में चले जाते है। ‘चौमासा’ चार महीनों में होने वाला एक वैदिक यज्ञ है।  यगोपरांत सृष्टि के संचालन का उत्तरदायित्व भगवान शिव ग्रहण कर लेते है। इसप्रकार भगवान शिव सावन माह के प्रधान देवता बन जाते है। इसीलिए इस महीने भूःवासी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए विशेष पूजा अर्चन करते है।

सावन लम्बी आयु पाने का महीना

पौराणिक कथाओं के अनुसार मृकण्डु ऋषि के पुत्र मार्कण्डेय की उम्र मात्र 16 साल की थी। अपनी आयु को बढ़ाने के लिए उन्होंने सावन महीने में शिव जी को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया। उनके कठिन तप और शिव भक्ति से प्रसन्न होकर शिवजी ने उनको लम्बी आयु का वरदान दिया। इसीलिए इस महीने लोग अपनों की लम्बी आयु के व्रत और पूजन करते है।

सावन में शिवलिंग पूजन

 

सावन माह में सोमवार का महत्व

सावन के महीने में सोमवार का अपना अलग महत्त्व है। वैसे भी सोमवार को शिवजी का दिन माना जाता है। सावन के सोमवार सूर्योदय से पूर्व स्नान कर भगवान शिव की विशेष पूजा अर्चन की जाती है। स्त्रियों के लिए सावन के सोमवार का अपना अलग ही महत्त्व है। सोमवार को बहुत सी महिलाएं व्रत रखती है। कुछ स्त्रियां तो पूरे माह ही उपवास करती है। कुंवारी कन्याएँ अच्छे वर की कामना के साथ उपवास और शिव पूजन करती है। वहीं विवाहित स्त्रियां अपने पतियों के अच्छे स्वस्थ और मंगल कामना के लिए व्रत और पूजन करती है।

साल 2022 में सावन सोमवार किस दिन पड़ेगा

  • श्रावण मास का पहला सोमवार – 18 जुलाई 2022
  • सावन मास का दूसरा सोमवार – 25 जुलाई 2022
  • श्रावण मास का तीसरा सोमवार – 01 अगस्त 2022
  • सावन मास का चौथा सोमवार – 08 अगस्त 2022

सावन सोमवार पूजा करने की विधि (Sawan somvaar ko pooja karne ki vidhi)

सोमवार व्रत की पूजा की तैयारी प्रातःकाल से ही शुरु कर देनी चाहिए। भोर में उठने के साथ ही घर की साफ़ सफाई कर लेनी चाहिए। उसके पश्चात स्नान करके, पुरे घर में गंगा जल छिड़ककर, घर को शुद्ध करना चाहिए। अगर आपके घर में मंदिर है तो उसकी भी साफ़ सफाई करके गंगा जल छिड़क देना चाहिए। फिर मंदिर में शिव जी की स्थापना करनी चाहिए। अगर मंदिर नहीं है तो, घर के ईशान कोण में भगवान शंकर की मूर्ती या चित्र स्थापित करना चाहिए। ईशान कोण घर के पूर्व और उत्तर के बीच की दिशा में होता है। मूर्ती स्थापना के बाद सावन माह के व्रत का संकल्प लेना चाहिए। तत्पश्चात सपरिवार शिव जी की पूजा आरंभ करनी चाहिए।

सोमवार को भगवान शंकर समेत माता पार्वती, श्री गणेश भगवान, नंदी जी, नागदेव और मूषक राज सभी की पूजा की जानी चाहिए। जल, दूध, शहद, दही, चीनी, शुद्ध देसी घी, पंचामृत, मोली,वस्त्र, चन्दन, रोली, अक्षत, बेल-पत्र, भांग, धतूरा, कमल, गट्ठा, पान-सुपारी, लौंग, इलाइची, प्रसाद, फल, मिठाई, दक्षिणा आदि पूजन सामग्री में होना चाहिए। आरती धूप दिया और कपूर जलाकर करना चाहिए।

सावन सोमवार व्रत का समय सूर्योदय से शुरु होकर सूर्यास्त तक रहता है। व्रत के दिन सपरिवार सोमवार व्रत कथा सुने। व्रत करने वाले सभी लोग सूर्यास्त के बाद सिर्फ एक बार भोजन करें। सावन सोमवार व्रत का पालन करने वालों के सभी दुःख दूर होते है और उनकी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

 

शिव पूजन में रुद्राभिषेक की विधि (Rudrabhishek ki vidhi)

अभिषेक फिर चाहे वो जलाभिषेक हो या रुद्राभिषेक दोनों का शिव पूजन में अपना अलग ही महत्त्व है। रुद्राभिषेक वर्ष में विशेष अवसरों पर ही किया जाता है। परन्तु सावन में आप प्रतिदिन रुद्राभिषेक कर सकते है। रुद्राभिषेक करते समय आपको उसके नियम का कड़ाई से  पालन करना चाहिए। किसी भी पूजा से पहले सर्वप्रथम भगवान श्रीगणेश की पूजा करनी चाहिए। उसके बाद भगवान शिव की पूजा शुरु करनी चाहिए। पूजन की पूरी विधि आप अपने घर पर भी कर सकते है। या फिर आप मंदिर में पुजारी के देखरेख में रुद्राभिषेक संपन्न कर सकते है।  रुद्राभिषेक करने की विधि इस प्रकार है।

  • सर्वप्रथम शिवलिंग को गंगाजल मिश्रित जल से स्नान कराया जाता है। फिर पंचामृत जोकि दूध, दही, चीनी, शहद और शुद्ध देसी घी के मिश्रण से बनता है, से स्नान कराया जाता है। पुनः सुध जल से स्नान करके शिवलिंग को शुद्ध किया जाता है।
  • तत्पश्चात शिवलिंग पर  चन्दन का लेप लगाकर जनेऊ पहनाया जाता है।
  • शिवलिंग पर कुमकुम, रोली या सिन्दूर नहीं चढ़या जाता है। शिव जी को अबीर अर्पण किया जाता है।
  • बेल-पत्र, धतूरे, अकाव के फूल, धतूरे का फूल, शमी पत्र, फल व मीठा चढ़या जाता है। शमी और बेल पत्र का शिव पूजन में विशेष महत्त्व है। जिनको भगवन शिव को जरुर अर्पण करें। शमी पत्र को स्वर्ण तुल्य माना जाता है।
  • रुद्राभिषेक की प्रक्रिया के दौरान ‘ॐ नमः शिवाय’ मंत्र का उच्चारणन लगातार करना चाहिए।
  • शिव पूजन के पश्चात माता गौरी और बाकि देवों की पूजा की जानी चाहिए।

शिव पूजन की सामग्री (Shiv poojan samagri)

सावन में भगवान शिव की पूजा करते समय कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए। भगवान शिव को वही चीजें अर्पण करनी चाहिए जो उन्हें प्रिय है। ऐसी किसी भी वास्तु या सामग्री का अर्पण न करें जिससे भगवान कुपित हो जाये और आपकी पूजा व्यर्थ चली जाये। सावन माह में भगवान शिव को क्या अर्पण करना चाहिए और क्या नहीं इसकी जानकारी नीचे दी हुई है।

भगवान शंकर को अर्पित करें ये चीजें

  • पूजन सामग्री में धतूरा, धतूरे का फूल, बेल-पत्र, शमी पत्र, भांग, इत्र, केसर, अक्षत, शक्कर, गंगाजल, शहद, दही, देसी घी, गन्ने का रस और फूल होना चाहिए।
  • दूध भगवन शिव को बहुत प्रिय है। सावन महीने में शिवलिंग पर दूध चढ़ाया जाता है। सावन में दूध से रुद्राभिषेक भी किया जाता है।
  • फूलों में आक का लाल और सफ़ेद पुष्प जरुर अर्पित करें।  भगवन शिव को इन फूलों से बेहद लगाव है।

भगवान शंकर को ना चढ़ाएं ये चीजें

  • महादेव को रोली और कुमकुम नहीं लगाना चाहिए। ये भगवान शिव के लिए वर्जित है। इससे भगवान कुपित होते है।
  • भोलेनाथ को केवड़े और केतकी के पुष्पों का अर्पण नहीं करना चाहिए।
  • भगवन शिव की पूजा में शंख का उपयोग वर्जित माना जाता है। इसीलिए शिव पूजन में शंख अर्पण नहीं करना चाहिए।
  • नारियल या नारियल पानी, हल्दी और तुलसी दल भूलकर भी भगवान शिव को नहीं अर्पण करने चाहिए। इससे पूजा का इच्छित फल नहीं मिलता है।

शिव पूजन में बेल-पत्र का महत्त्व

बेल-पत्र के बगैर शिव पूजन अधूरा माना जाता है। शिव पूजन में बेल-पत्र के महत्त्व का वर्णन हिन्दू धर्म की पौराणिक कथाओं में है। कथा के अनुसार एक डाकू अपने परिवार के भरण पोषण के लिए राहगीरों को लूटने का काम करता था। एक रात्रि वो लूटने के मकसद से राह किनारे एक पेड़ पर चढ़कर बैठ गया। लम्बी प्रतीक्षा के बाद भी कोई राहगीर उस रास्ते पर नहीं आया। तब डाकू के मन में तरह तरह के विचार आने लगे। वो अपने कर्मो के बारें में सोचने लगा और उसके ह्रदय में पश्चाताप के भाव उत्पन्न हुए। वो अपने बुरे कर्मो को कोसता हुआ पेड़ के पत्तों को तोड़ तोड़ कर नीचे फेकने लगता है।

डाकू जिस पेड़ पर बैठा था वो बेल वृक्ष था। उसी वृक्ष  के नीचे एक शिवलिंग स्थापित था। डाकू द्वारा फेके गए पत्ते शिवलिंग पर गिर रहे थे। पश्चाताप के कारण डाकू के मन में सच्ची श्रद्धा का संचार होता है। सच्चे मन से इस तरह अपनी पूजा किये जाने से भगवन शिव प्रसन्न होकर डाकू को दर्शन देते है। साक्षात भोलेनाथ को अपने सामने देख डाकू आती प्रसन्न होता है और अपने पापों के लिए क्षमायाचना करता है। भोलेनाथ उसकी पीड़ा को समाप्त कर उसे सही राह दिखते है। इस प्रकार शिव पूजन में बेल-पत्र का विशेष महत्त्व है।

 

सावन में कावड़ियों का ग्रुप

 

कांवड़ यात्रा क्यों किया जाता है (Kanwar yatra kyo kiya jata hai)

सावन में कांवड़ यात्रा का अलग ही महत्त्व है। माह के शुरुआत में ही लाखों लोग कांवड़ यात्रा के लिए निकल पड़ते है। कांवड़ यात्रा पर निकलने वाले लोगों को कांवड़िया कहा जाता है। कांवड़ बांस की बनी होती है, जिसके दोनों सिरों पर जल भरने के लिए मटकियां बंधी होती है। कांवड़ को फूलों, कपड़ों और घुन्घुरों से सजाया जाता है। कांवड़िये केसरी रंग के वस्त्र पहनते है। कांवड़ में पवित्र गंगाजल भरके कांवड़िये ‘बोल बम’ का उद्घोष करते हुए इस धार्मिक यात्रा को पूरा करते है। मुख्य रूप से गौमुख, संगम, हरिद्वार या गंगोत्री जैसे तीर्थस्थलों से गंगाजल भरा जाता है। जो लोग लम्बी यात्रा करने में असमर्थ होते वो निकटतम गंगा घाट से जल भर सकते है।

कांवड़ यात्रा के नियम बहुत ही कठिन है। यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रखा जाता है। कांवड़ यात्रा करने वाले लोग मांसाहार और नशीले पदार्थों का सेवन नहीं कर सकते है। इसका पालन उन्हें पूरे सावन माह करना होता है। यात्रा के दौरान लोग नंगे पैर पद यात्रा करते है। किसी वाहन या सवारी का प्रयोग वर्जित है। कांवड़िये अपनी यात्रा को पूरी कर, सावन माह की चतुर्दशी को अपने निवास के निकट शिव मंदिरों में इस जल से अभिषेक करते है। सच्ची श्रद्धा और भक्ति भाव से की हुई यात्रा सदैव फलदाई होती है।

कांवड़ यात्रा की शुरुआत कब हुई

सावन माह में होने वाली कांवड़ यात्रा को लेके बहुत सी मान्यताएं प्रचलित है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ये मान्यता है की सबसे पहले भगवान परशुराम ने इस यात्रा की शुरुआत की थी। भगवान परशुराम ने गढ़मुक्तेश्वर से कांवड़ में गंगा जल लाकर ‘पुरा महादेव’ के पुरातन शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। यह शिवलिंग वर्तमान में बागपत के पास स्थित है। इसीलिए आज भी लोग उसी परंपरा का पालन करते हुए गढ़मुक्तेश्वर, जिसका वर्तमान नाम ब्रजघाट है, से कांवड़ में जल लेकर ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक करते है। ऐसा करने वालों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

एक दूसरी मान्यता के अनुसार कांवड़ यात्रा की शुरुआत रावण ने की थी। समुन्द्र मंथन से निकले विष को पीने के बाद भगवान शिव का कंठ नीला पड़ गया था। उसके प्रभाव को कम करने के लिए राजा रावण ने कांवड़ यात्रा करके गंगा जल से ‘पुरा महादेव’ का जलाभिषेक किया था। कुछ का कहना है कि विष के प्रभाव को कम करने के लिए देवताओं ने शिव जी को गंगाजल अर्पण किया था, वही से इसकी शुरुआत हुई।

कुछ का मानना है कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने की थी। उन्होंने वनवास के दौरान कांवड़िये का वेश धरकर कांवड़ में गंगाजल लेके बाबाधाम स्थित शिवलिंग का जलाभिषेक किया था। वही से यात्रा प्रारम्भ हुई।

कांवड़ यात्रा प्रारम्भ होने के कारण चाहे जो भी रहे हो, इस यात्रा को भक्ति भाव से पूरा करने वालों की सभी मनोकामनाएं अवश्य पूर्ण होती है।

सावन माह में पड़ने वाले त्यौहार और उनके महत्त्व

श्रवण का पूरा महीना धार्मिक उत्सवों से भरा रहता है। शिव भक्तों के लिए सावन का हरदिन महत्वपूर्ण है। शिव भक्ति में लीन होने का इससे अच्छा अवसर साल में कभी नहीं आता है। इसके अलावा सावन माह में कुछ और महत्वपूर्ण त्यौहार आते है। जिनको लोग उतने ही श्रद्धा और भक्ति भाव से मानते है। आइए हम उन विशेष त्योहारों के बारें में जाने। 

सावन माह में पड़ने वाली एकादशी का महत्त्व

जिसप्रकार सावन सोमवार का अपना महत्व है उसी तरह सावन में पड़ने वाली एकादशी का भी विशेष महत्त्व है। सावन मास में दो एकादशी पड़ती है, एक शुक्ल पक्ष में और दूसरी कृष्ण पक्ष में। दोनों का पाना अलग महत्त्व और विशेषताएं है।

कामिका एकादशी

श्रावण माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को कामिका एकादशी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार यह तिथि भगवान विष्णु जी को समर्पित है। इस दिन जो भक्त सच्चे मन से भगवन विष्णु की आराधना और उपवास करता है, उससे सभी देवता, गंधर्व, सूर्य आदि सभी पूजित हो जाते है। अर्थात मात्र भगवान विष्णु की पूजा करने से आपको सभी देवगणों का आशीर्वाद मिलता है। इस व्रत का पालन करने वाले सभी जीवों को उनके पापों से मुक्ति मिल जाती है।

पुत्रदा एकादशी

सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। संतान सुख से वंचित दम्पतियों के लिए यह दिन विशेष फलदायी होता है। इस दिन विधिपूर्वक व्रत और पूजन करने से संतान प्राप्ति का वरदान मिलता है। इसके अलावा पुत्रदा एकादशी व्रत रखने वालों को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। मन की चंचलता समाप्त होती है और मानसिक संतोष का अनुभव होता है।

नाग पंचमी का महत्त्व

भारतीय हिन्दू संस्कृति में नागों का विशेष महत्त्व है। सावन माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन नागों की विशेष पूजा अर्चन की जाती है। लोग मिट्टी से तरह तरह के सांप बनाते है और उन्हें विभिन्न रंगो से सजाते है। नागों की मूर्ती की स्थापन की जाती है। लोग उनको कमल का फूल और दूध अर्पण करके उनकी पूजा करते है।

सावन की भुजरिया

भुजरिया को सावन माह के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बोया जाता है। इसमें टोकरी में मिट्टी डालकर गेंहू बोया जाता है। इस दिन से लेकर सावन की आखिरी पूर्णिमा तक इसकी पूजा की जाती है। तबतक गेंहू अंकुरित हो जाते है, जिन्हे भुजरिया कहा जाता है। सावन पूर्णिमा के अगले दिन भुजरिया का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भुजरिये को कुओं या ताल-तलैया पर जाकर निकला जाता है। पहली भेंट भगवान को चढ़ाई जाती है। तदुपरांत लोग एक दूसरे से भुजरिया बदलकर अपनी अपनी भूल चूक भूलकर गले मिलते है। ये त्यौहार रूठों को मानाने और नए सम्बन्ध बनाने का है।

हरियाली तीज का महत्त्व 

श्रावण माह के शुक्ल पक्ष ही तृतीय तिथि को हरियाली तीज का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन जल के देवता वरुण देव की विशेष पूजा की जाती है। सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है। इस व्रत में अन्न और जल दोनों का त्याग किया जाता है। माता गौरी की विशेष पूजा अर्चना की जाती है और उन्हें सोलह सिंगार चढ़ाया जाता है। कुंवारी कन्याएँ अच्छे वर की कामना लेकर इस व्रत को करती है। इस व्रत को श्रद्धा पूर्वक करने से दांपत्य जीवन की परेशानिया दूर होती है। पति पत्नी का सम्बन्ध प्रगाढ़ और मधुर हो जाता है।

कजरी तीज का महत्त्व

हरियाली तीज की तरह ही कजरी तीज का महत्त्व है। सावन माह की शुक्ल पक्ष की नवमीं को कजरी तीज का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष पूजा अर्चना की जाती है। सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु और वैवाहिक जीवन की परेशानियों को दूर करने के लिए इस व्रत का पालन करती है। इस व्रत के प्रभाव से परिवार पर किसी भी प्रकार का संकट नहीं आता है। यह व्रत कुंवारी कन्याएं शादी की बाधा को दूर करने के लिए रखती है।

भाई बहन का त्योहार रक्षाबंधन

सावन के अंतिम पूर्णिमा के दिन रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। यह त्यौहार भाई बहनों के लिए विशेष महत्त्व रखता है। इस दिन बहन भाई की कलाई पर राखी बांध करके, उससे अपनी रक्षा का वचन लेती है। भाई भी बहन से राखी बंधवाकर उसकी रक्षा करने का वचन देता है। ये त्यौहार भाई बहन के रिश्ते को और मजबूत करती है।

सावन महीने में कई विशिष्ट और महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार का समावेश है। प्रत्येक त्योहार की अपनी विशिष्ट पहचान और पौराणिक महत्व है। इसीलिए इस पूरे माह धार्मिक उत्सवों का तांता लगा रहता है। लोग पूरे उत्साह और भक्ति भाव से सावन का स्वागत करते है। और शिव भक्ति में लीन होकर पूरे महीने धार्मिक उत्सवों का आनंद लेते है। सावन माह में पड़ने वाले सभी त्योहारों का तारीखों के साथ विवरण नीचे पढ़ें। 

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