कोरोना महामारी के शुरुआत से ही इसके रोकधाम और उपचार के निरंतर प्रयास किये जा रहे है। कोरोना संक्रमण के प्रकोप के साथ ही इसकी जाँच और उपचार करना एक चुनौती रही है। कोरोना संक्रमण के उपचार के लिए अब तक विभिन्न पद्धतियों का ईजाद किया जा चुका है, जोकि बहुत हद तक सफल भी हुआ है। उपलब्ध उपचारों की वजह से कोरोना महामारी के मृत्यदर में बहुत कमी आई है। कोरोना उपचार के साथ ही साथ इसकी सही समय पर जाँच भी बहुत जरुरी है जिससे मरीज का समय रहते इलाज किया जा सके।
अबतक कोरोना जाँच के विभिन्न पद्धतियों में एंटीजन(Antigen) और आरटी-पीसीआर(RT-PCR) मुख्य रहे है। इन पद्धतियों में संक्रमण जाँच के लिए एक प्रशिक्षित चिकित्सा कर्मचारी की जरुरत होती है जोकि मरीज के नाक या गले से कपास की कलियां(Swab Method) के द्वारा नमूना जमा करके प्रयोगशाला में जाँच के लिए भेजता है।
एंटीजन पद्धति – Antigen Method
एंटीजन पद्धति द्वारा जाँच करने पर कोरोना वायरस की सतह पर पाए जाने वाले एक खास प्रोटीन को जांचा जाता है। इस पद्धति से जाँच के नतीजे एक घण्टे में आ जाते है। परन्तु इस पद्धति में गलत परिणाम आने की भी सम्भावना रहती है। इस पद्धति में नमूने स्वैब मेथड से ही लिए जाते है।
आरटी-पीसीआर(RT-PCR)
दूसरी और प्रभावशाली पद्धति आरटी-पीसीआर(RT-PCR) है। इस पद्धति में जाँच के परिणाम’४८ से ७२ घंटे बाद आते है। इस पद्धति में जमा किये हुए नमूने से वायरस के आरएनए (RNA) को विकसित करके निकला जाता है जिसमे की ३६ से ४८ घंटे तक का समय लग सकता है। वायरस के आरएनए की मौज़ूदगी ही मरीज में संक्रमण की पुष्ठि करती है।
गार्गल जाँच पद्धति (Saline Gargle RT-PCR Test)
जैसा कि आपने देखा की मौजूदा संक्रमण जाँच पद्धति में से पहली में जाँच के परिणाम के गलत आने की संभावना है वही दूसरी तरह की जाँच में समय बहुत अधिक लग जाता है। संक्रमण के जाँच के समय को कम करना शोधकर्ताओं के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती रही है। इसी विषय पर वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद(ICMR) की देखरेख में काम करते हुए नागपुर स्थित राष्ट्रीय पर्यावरण इंजीनियरिंग अनुसंधान संस्थान (National Environmental Engineering Research Institute (NEERI)) के वैज्ञानिकों को बहुत बढ़ी सफलता मिली है।
NEERI के वैज्ञानिको ने गार्गल पद्धति से कोरोना संक्रमित मरीज के नमूने जमा करने और जाँच करने का एक नायाब तरीका ढूंढ निकाला है। इस पद्धति द्वारा नमूने की जाँच तीन चरणों में पूरा किया जाता है। आइयें हम विस्तार से गार्गल जाँच पद्धति के उन तीन चरणों के बारें में जाने।
पहला चरण – नमूना जमा करना (Sample Collection)
अब तक मौजूदा जाँच पद्धतियों में वायरस संक्रमण के नमूने लेने के लिए कपास की कलियां(Swab Method) का इस्तेमाल किया जाता था और ये नमूने एक परीक्षित चिकित्सा कर्मचारी ही जमा करता था। परन्तु गार्गल विधि के आ जाने से नमूना जमा करना बहुत ही आसान हो गया है। इस विधि से नमूने जमा करने के लिए किसी परीक्षित चिकित्सा कर्मचारी की जरुरत नहीं होती है। संभावित संक्रमित व्यक्ति को NEERI द्वारा विकसित किये हुए लवणयुक्त घोल (Saline Water) से कुल्ला (Gargle) करके उस घोल को स्वयं ही प्रयोगशाला में दे सकते है। जहाँ पर प्रयोगशाला तकनीशियन उसकी जाँच करता है।
दूसरा चरण – आरएनए विकसित करना (RNA Development)
मौजूदा RT-PCR जाँच के लिए वायरस का RNA विकसित करना पड़ता है जिसमें ३६ से ४८ घंटे तक का समय लग सकता है। परन्तु गार्गल पद्धति में ये काम बहुत जल्दी हो जाता है। इस पद्धति में जमा किये हुए नमूने में एक बफर को मिलाया जाता है। इस बफर मिश्रित नमूने को ३० मिनट तक कमरे के तापमान पर रखा जाता है। फिर इस मिश्रण को ६ मिनट तक ९८ डिग्री के तापमान पर गर्म किया जाता है। अब तैयार मिश्रण से आसानी से वायरस का RNA निकाला जा सकता है। तो आपने देखा कैसे नमूने के प्रयोगशाला में पहुंचने के बाद एक से डेढ़ घंटे में ही नमूने से RNA को निकाल लिया जाता है। पहले इसी प्रक्रिया में ३६ से ४८ घंटे का समय लगता था।
तीसरा चरण – आरटी-पीसीआर जाँच करना (Perform RT-PCR Test)
तीसरे चरण में निकले जा चुके वायरस के RNA नमूने पर आरटी-पीसीआर जाँच करके कोरोना संक्रमण की मौजूदगी का पता लगाया जा सकता है। इस सम्पूर्ण विधि में जांच परिणाम ३ घंटे के अंदर ही प्राप्त हो जाता है। इसके अलावा गार्गल पद्धति के कुछ और भी फायदे है जैसेकि –
१. इस पद्धति में मरीज के नाक और कान से नमूना लेने की जरुरत नहीं पड़ती है।
२. इस पद्धति में संभावित संक्रमित व्यक्ति स्वयं ही नमूना जमा कर सकता है।
३. नमूना जमा करने के लिए किसी परीक्षित चिकित्सा कर्मचारी की आवश्यकता नहीं होती है।
४. इस पद्धति में नमूने को कहीं भेजने की जरुरत नहीं पड़ती।
५. इस पद्धति में परिणाम जल्दी आते है।
६. इस पद्धति में RNA निष्कर्षण किट की जरुरत नहीं होती है।
७. इस पद्धति से जाँच में कम खर्च आता है।
८. ये पद्धति ग्रामीण और आदिवासी इलाके के लिए बेहतर है।
भारत सरकार द्वारा NEERI को गार्गल पद्धति(Saline Gargle RT-PCR Test) के जरिये जाँच करने की जरुरी मंजूरी दे दे गई है। इस पद्धति के प्रयोग से कोरोना संक्रमण के जाँच में क्रांतिकारी तेजी लाई जा सकती है। इस पद्धति के आ जाने से लोगों को जाँच परिणाम के लिए लम्बा इंतजार नहीं करना पड़ेगा। संक्रमण जाँच परिणाम जल्दी प्राप्त होने से कोरोना मरीज के इलाज में होने वाली देरी पे भी काबू पाया जा सकता है। सेलाइन गार्गल आरटी-पीसीआर विधि तत्काल, आरामदायक और रोगी के अनुकूल है। नमूनाकरण तुरंत किया जाता है और परिणाम ३ घंटे के भीतर उत्पन्न हो जाता है।
पुरानी पद्धति में नमूना संग्रह के दौरान रोगी को असहजता का सामना करना पड़ता था। इसके साथ ही बहुत सा समय नमूने को प्रयोगशाला तक ले जाने में भी बर्बाद होता था। जिसके फलस्वरूप जाँच परिणाम आने में बहुत समय लग जाता था। परन्तु गार्गल विधि से न केवल नमूना संग्रह अपितु परीक्षण परिणाम भी बहुत जल्दी आ जाता है। जिसके फलस्वरूप रोगी की सही समय पर जरुरी चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जा सकती है। गार्गल विधि से कोरोना माहमारी के मृत्युदर में और कमी आने की भी संभावना है।