नरक चतुर्दशी या छोटी दिवाली

नरक चतुर्दशी को काली चौदस या छोटी दिवाली भी कहते है

नरक चतुर्दशी दीपावली महोत्सव के दूसरे दिन मनाया जाता है। नरक चतुर्दशी को काली चौदस, रूप चौदस या छोटी दीपावली भी कहते है। इस दिन हनुमान पूजा का भी विधान है। नरक चतुर्दशी को आत्मा को नरक की पीड़ा से मुक्त करने के लिए अनुष्ठान किए जाते है। इस दिन बहुत से हिन्दु अपने पितरों या पूर्वजों की अपवित्र आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते है।

हिंदु शास्त्रों के अनुसार मान्यता है, कि नरक चतुर्दशी की प्रातःकाल तिल का तेल लगाकर अपामार्ग (चिचड़ी) की पत्तियाँ जल में में डालकर स्नान करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पूरी श्रद्धा और विधि विधान से पूजा करने वाले व्यक्ति को नरक से मुक्ति और स्वर्ग की प्राप्ति होती है।

नरक चतुर्दशी, छोटी दिवाली  २०२२ किस दिन मनाई जाएगी एवं शुभ मुहूर्त

यह त्यौहार जो नरक चतुर्दशी या नर्क चतुर्दशी या नर्का पूजा के नाम से प्रसिद्ध है, कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है। इस वर्ष यह पर्व सोमवार, 24 अक्टूबर 2022 के दिन मनाया जाएगा।

अभ्यंग स्नान समय : सुबह 05 बजकर 10 मिनट से सुबह 06 बजकर 31 मिनट तक
कुल अवधि : 01 घंटा 21 मिनट

नरक चतुर्दशी पूजा विधि

  • इस दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान का महत्व है। स्नान से पहले शरीर पर तिल के तेल की मालिश करनी चाहिए। फिर अपामार्ग (चिचड़ी) के पत्तों को पानी में डालकर स्नान करना चाहिए।
  • कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की अहोई अष्टमी के दिन नरक चतुर्दशी के लिए एक लोटे में जल भरकर रखा जाता है। नरक चतुर्दशी के दिन इस लोटे का जल स्नान के पानी में मिलाकर नहाना चाहिए। मान्यता है कि ऐसा करने से व्यक्ति को नरक के भय से मुक्ति मिलती है।
  • स्नान के तुरंत उपरांत दक्षिण दिशा में हाथ जोड़कर यमराज से अपने पापों को नष्ट करने की प्रार्थना करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति द्वारा वर्ष भर किए गए पापों का नाश हो जाता है।
  • नरक चतुर्दशी की संध्या को सभी देवी देवताओं का विधि विधान से पूजन करना चाहिए। पूजा के उपरांत तेल के दीपक घर की चौखट के दोनों ओर, घर के बाहर व आँगन में रखें।
  • इस दिन यमराज के नाम का तेल का दीपक जलाकर घर के मुख्य द्वार से बाहर दक्षिण दिशा में रखें। ध्यान रखें की दीपक की लौ की दिशा बाहर की ओर हो।
  • नरक चतुर्दशी को रूप चौदस या रूप चतुर्दशी भी कहते है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की विशेष पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से व्यक्ति को सौंदर्य की प्राप्ति होती है।
  • इस दिन भारत के कुछ हिस्सों में हनुमान जी की पूजा का भी विधान है।
  • नरक चतुर्दशी निशिद काल (मध्यरात्रि का समय) में घर के बेकार सामान को बाहर फेंकने की परंपरा है। जिसे दारिद्रय नि:सारण भी कहा जाता है। माना जाता है कि नरक चतुर्दशी के अगले दिन माता लक्ष्मी का आगमन होता है, ऐसे में गंदगी यानि दरिद्रय को घर से बाहर निकाल देना चाहिए।

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा

नरक चतुर्दशी की पौराणिक कथा

हिंदु पौराणिक कथाओं के अनुसार, पुरातन काल में नरकासुर नामक एक अत्याचारी राक्षस था। उसने अपनी राक्षसी शक्तियों के बल पर सभी देवताओं एवं साधु संतों को परेशान किया हुआ था। नरकासुर ने अपना भय व्याप्त करने के लिए देवताओं और संतों की सोलह हज़ार स्त्रियों को बंधक बना लिया था। नरकासुर के अत्याचार से त्रस्त होकर सभी देव और साधुओं ने भगवान श्री कृष्ण से मदद की गुहार लगाई। नरकासुर को स्त्री के हाथो मरने का श्राप था।

भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की मदद से कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को नरकासुर का वध कर दिया है। नरकासुर की कैद से श्री कृष्ण ने सभी सोलह हज़ार स्त्रियों को आजाद कराया। बाद में यही स्त्रियां श्री कृष्ण की सोलह हज़ार पटरानियों के नाम से जानी जाती है। नरकासुर के वध से प्रसन्न लोगों ने कार्तिक माह की अमावस्या को अपने घरों को दीपों से रोशन किया। तभी से नरक चतुर्दशी और दीपावली का पर्व मनाया जाने लगा।

नरक चतुर्दशी को नरक निवारण चतुर्दशी क्यूँ कहा जाता है?

इस पर्व को नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाता है। इसके ऐसा कहलाने के पीछे एक पौराणिक कथा हैं, जो इस प्रकार हैं :

पुरातन काल में रन्ति देव नामक एक प्रतापी राजा थे। वो बहुत ही शांत स्वाभाव और दान पुण्य में विश्वास करने वाले राजा थे। उन्होंने अपने जीवन में गलती से भी किसी का अहित नहीं किया। मृत्यु के समय यमदूत इनके पास आए। यमदूतों से इन्हे पता चला कि इन्हे मोक्ष नहीं बल्कि नरक मिला है। कारण पूछे जाने पर यमदूतों ने राजा को बताया कि, एक बार अज्ञानवश आपके द्वार से एक ब्राह्मण भूखा वापस चला गया था। जिसके परिणाम स्वरुप आपको नरक भोगना पड़ेगा।

तब राजा ने यमराज से अपनी गलती सुधारने के लिए कुछ समय माँगा। राजा के अच्छे आचरण को देखते हुए यमराज ने उन्हें एक वर्ष का समय दिया। तब राजा रन्ति ने अपने गुरु से इस घटना की सारी बाद बताई और इससे निवारण का उपाय पूछा। गुरु की सलाह अनुसार, राजा रन्ति ने कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को एक हज़ार ब्राह्मणों को भोज कराया और उनसे अपनी गलती की क्षमा मांगी। राजा रन्ति के प्रयासों से ब्राह्मण प्रसन्न हुए और उनके आशीर्वाद के फल स्वरुप राजा रन्ति को मोक्ष प्राप्त हुआ। इसीलिए नरक चतुर्दशी को नरक निवारण चतुर्दशी भी कहा जाता है।

नरक चतुर्दशी को रूप चौदस या रूप चतुर्दशी क्यूँ कहते है?

पुरातन काल में हिरण्यगभ नामक एक राजा थे। उन्होंने अपना राजपाठ त्याग कर सन्यासी का जीवन अपना लिया था। उन्होंने कई वर्षों तक घोर तपस्या की, लेकिन इस दौरान उनके शरीर पर कीड़े लग गए। उनका शरीर सड़ने लगा। हिरण्यगभ अपनी स्थिति देखकर बहुत दुखी होकर नारद मुनि से अपनी व्यथा कही और कारण जानने की इच्छा जताई। तब नारद जी ने कहा की योग साधना के दौरान आपने अपने शरीर का उचित ध्यान नहीं रखा इसीलिए आपकी ऐसी हालत हो गई है। तब राजा ने नारद मुनि से इसका निवारण बताने को कहा।

नारद मुनि ने राजा से कहा की कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी के दिन अपने शरीर पर चंदन का लेप लगाकर सूर्योदय से पूर्व स्नान करें। तदोपरांत श्री कृष्ण की विधि से पूजा कर उनकी आरती उतारें। ऐसा करने से आपको अपना सौंदर्य पुनः प्राप्त हो जाएगा। राजा ने नारद मुनि द्वारा बताए गए उपाय को विधि विधान से पूरा किया, और अपना सौंदर्य वापस प्राप्त किया। इस प्रकार इस दिन को रूप चतुर्दशी भी कहा जाने लगा।

इस पर्व को छोटी दिवाली क्यूँ कहा जाता है?

इस पर्व को छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है। क्यूंकि इस दिन दीपावली की ही तरह रात्रि में दीप जलाकर रोशनी की जाती है।  लोग दीप दान करते है। सभी देवी देवताओं की पूजा करके अपने घर को दीपक से सजाते है। इसीलिए नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली के नाम से भी जाना जाता है।

नरक चतुर्दशी के दिन मिठाई खरीदने की भी परंपरा है। छोटी दीपावली दोस्तों, रिश्तेदारों आदि से मिलने और उपहारों के आदान-प्रदान का भी दिन है। धनतेरस के बाद नरक चतुर्दशी और उसके उपरांत दीपावली फिर गोवर्धन पूजा और अंत में भाईदूज का पर्व मनाया जाता है। इस प्रकार दीपावली पांच पर्वो का महापर्व है।

छोटी दिवाली के दिन हनुमान जयंती या हनुमान जी की पूजा क्यूँ की जाती है?

वाल्मीकि रामायण के अनुसार आज ही के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। इसीलिए इस दिन को कुछ लोग हनुमान जयंती के रूप में भी मनाते है। इस दिन लोग हनुमान चालीसा, हनुमान अष्टक आदि का पाठ करते है। इस प्रकार देश में दो बार हनुमान जयंती का पर्व मनाया जाता है। एक बार चैत्र की पूर्णिमा को और दूसरी बार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को।

इसके अलावा, भारत के कुछ हिस्सों में एक अन्य मान्यता के अनुसार हनुमान जी की पूजा की जाती है। विशेषकर गुजरात क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि इस दिन रात को आत्माएं विचरण करती है। उनके दुष्प्रभाव से बचने के लिए लोग हनुमान जी की पूजा करते है। साथ ही, राक्षस राज रावण को हराने में हनुमान जी के सहयोग से प्रसन्न होकर, श्री राम ने हनुमान जी को उनके सामान पूजा करने का आशीर्वाद दिया था। इस लिए भी लोग दिवाली के एक दिन पहले हनुमान जी की पूजा करते है।

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