कजरी तीज या कजली तीज भादो मास में कृष्ण पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है। समान्तयः हरियाली तीज के पंद्रह दिन बाद कजरी तीज का पर्व उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह आमतौर पर रक्षा बंधन के उत्सव के तीन दिन बाद और कृष्ण जन्माष्टमी से पांच दिन पहले आता हैं।
कजली तीज मुख्यत: महिलाओं का पर्व है। यह त्यौहार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार समेत उत्तर भारत के हिंदी भाषी क्षेत्रों में प्रमुखता से मनाया जाता है। इनमें से कई प्रदेशों में कजरी तीज को बूढ़ी तीज व सातूड़ी तीज के नाम से भी जाना जाता है। हरियाली तीज और हरतालिका तीज की तरह ही कजरी तीज भी सुहागन महिलाओं के लिए एक प्रमुख पर्व है। वैवाहिक जीवन की सुख और समृद्धि के लिए यह व्रत किया जाता है।
इस व्रत को सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत के रूप में भी रखती हैं। कजरी तीज पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती और नीमड़ी माता की पूजा आराधना करती हैं। महिलाएं अपने पति और परिवार की सुख समृद्धि की मनोकामना के साथ इस व्रत का पालन करती है। यह व्रत भी बिल्कुल हरतालिका तीज की तरह होता है। कजरी तीज के दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए निर्जला व्रत रखकर शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत खोलती हैं।
कजरी तीज पर महिलाएं गलती से भी ना करें ये काम
- कजरी तीज के दिन विवाहित महिलाओं को सफेद रंग के कपड़े नहीं पहनने चाहिए।
- इस दिन महिलाएं पूरा श्रंगार करें।
- इस दिन महिलाओं को अन्न और जल ग्रहण नहीं करना चाहिए। यह व्रत निर्जला रहकर किया जाता है।
- कजरी तीज के दिन पति से झगड़ा ना करें और ना ही कोई अपशब्द बोलें।
- इस दिन पति से अच्छे से बात करें और दूरी बनाकर ना रहें।
- इस दिन सुहागिन महिलाओं को हाथों पर महेंदी लगानी चाहिए। यह काफी शुभ होता है।
- इस दिन हाथों में चुड़ियां पहनें। खाली हाथ रखना काफी अशुभ माना जाता है।
साल 2022 में तीज त्यौहार कब है
तीज त्यौहार साल 2022 को निम्न तिथियों को पड़ रहे है।
हरियाली तीज – रविवार, 31 जुलाई
कजरी तीज – रविवार, 14 अगस्त
हरतालिका तीज – मंगलवार, 30 अगस्त
कजरी तीज रविवार, 14 अगस्त 2022 को मनाई जाएगी।
तृतीया तिथि प्रारम्भ – 14 अगस्त 2022 को मध्यरात्रि 12 बजकर 55 मिनट से
तृतीया तिथि समाप्त – 14 अगस्त 2022 को रात्रि 10 बजकर 37 मिनट तक
पूजा सामग्री और पूजा विधि
कजली तीज के लिए कुमकुम, काजल, मेहंदी, मौली, अगरबत्ती, दीपक, माचिस, चावल, कलश, फल, फूल, नीम की एक डाली, दूध, जल, गाय का गोबर या मिट्टी, ओढ़नी, सत्तू, घी, कुछ सिक्के, प्रसाद आदि पूजा सामग्री की आवश्यकता होती है।
कजली तीज के अवसर पर माता पार्वती के रूप में नीमड़ी माता की पूजा करने का विधान है। कजरी तीज के दिन महिलाएं को सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण कर मां का स्मरण करते हुए निर्जला व्रत का संकल्प लेना चाहिए। इसके बाद कजरी तीज की निम्न प्रकार से पूजा करें: –
- घर में सही दिशा का चुनाव करके मिट्टी या गोबर से एक तालाब जैसा छोटा घेरा बना लें।
- इसके बाद तालाब के किनारे मध्य में नीम की एक डाली को लगा दीजिए और इसके ऊपर लाल रंग की ओढ़नी डाल दीजिए।
- फिर इस तालाब को कच्चा दूध या जल से भर लें और उसके एक किनारे पर दीपक जला लें।
- इसके बाद भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करके उनकी पूजा करें।
- अब कलश में पानी, चावल और एक उसको स्थापित करें। स्थापित करके कलश की कुमकुम, चावल, सत्तू और गुड़ चढ़ाकर पूजा करें।
- इसी प्रकार गणेश जी और माता लक्ष्मी को कुमकुम, चावल, सत्तू, गुड़, सिक्का और फल अर्पित करके उनकी आराधना करें।
- इसके बाद नीमड़ी माता की पूजा करें।
- सर्वप्रथम नीमड़ी माता को जल व रोली के छींटे दें और चावल चढ़ाएं।
- इसके बाद नीमड़ी माता के पीछे दीवार पर मेहंदी, रोली और काजल की 13-13 बिंदिया अंगुली से लगाएं। मेंहदी, रोली की बिंदी अनामिका अंगुली से लगाएं और काजल की बिंदी तर्जनी अंगुली से लगानी चाहिए। अविवाहिता लड़कियों को यह 16-16 बार देना होता है।
- नीमड़ी माता को मोली चढ़ाने के बाद मेहंदी, काजल और वस्त्र चढ़ाएं। दीवार पर लगी बिंदियों के सहारे लच्छा लगा दें।
- नीमड़ी माता को फल और दक्षिणा चढ़ाएं और पूजा के कलश पर रोली से टीका लगाकर लच्छा बांधें।
- अब कजरी व्रत कथा शुरू करने से पहले अगरबत्ती और दीपक जला लीजिए।
- कथा समाप्ति के बाद आरती करके सबको प्रसाद वितरण करें।
- चाँद निकलने के बाद, पूजा स्थल पर बने तालाब के किनारे पर रखे दीपक के उजाले में नींबू, ककड़ी, नीम की डाली, नाक की नथ, साड़ी का पल्ला आदि देखें। इसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य दें।
- चंद्रमा को अर्घ्य देकर पति के हाथ से पानी पीकर व्रत खोलें।
- माता नीमड़ी को भोग लगाकर अपने व्रत का पारण करें।
कजरी तीज पर चन्द्रमा को अर्घ्य देने की विधि
कजली तीज पर संध्या के समय नीमड़ी माता की पूजा करने के बाद चाँद को अर्घ्य देने की परंपरा है। चन्द्रमा को अर्घ्य इस प्रकार देना चाहिए।
- चंद्रमा को जल के छींटे देकर रोली, मोली, अक्षत चढ़ाएं और फिर भोग अर्पित करें।
- चांदी की अंगूठी और आखे (गेहूं के दाने) हाथ में लेकर जल से अर्घ्य दें और एक ही जगह खड़े होकर चार बार घुमें।
कजरी तीज व्रत के नियम क्या है
कजली तीज व्रत के नियम निम्न प्रकार से है: –
- यह व्रत सामान्यत: निर्जला रहकर किया जाता है। हालांकि गर्भवती महिलाएं फलाहार कर सकती हैं।
- यदि किसी कारणवश रात में चाँद नहीं दिखाई दे, तो रात्रि में लगभग 11 बजकर 30 मिनट पर आसमान की ओर अर्घ्य देकर व्रत खोला जा सकता है।
- व्रत उद्यापन के बाद संपूर्ण उपवास संभव नहीं हो तो फलाहार किया जा सकता है।
व्रत कथा
कजली तीज की पौराणिक व्रत कथा के अनुसार एक गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। भाद्रपद महीने की कजली तीज आई। ब्राह्मणी ने व्रत रखा। ब्राह्मण से कहा आज मेरा तीज माता का व्रत है। कही से चने का सत्तू लेकर आओ। ब्राह्मण बोला, सत्तू कहां से लाऊं। तो ब्राह्मणी ने कहा कि चाहे चोरी करो चाहे डाका डालो। लेकिन मेरे लिए सत्तू लेकर आओ।
रात का समय था। ब्राह्मण घर से निकला और साहूकार की दुकान में घुस गया। उसने वहां पर चने की दाल, घी, शक्कर लेकर सवा किलो तोलकर सत्तू बना लिया और जाने लगा। आवाज सुनकर दुकान के नौकर जाग गए और चोर-चोर चिल्लाने लगे।
साहूकार आया और ब्राह्मण को पकड़ लिया। ब्राह्मण बोला मैं चोर नहीं हूं। मैं एक गरीब ब्राह्मण हूं। मेरी पत्नी का आज तीज माता का व्रत है इसलिए मैं सिर्फ यह सवा किलो का सत्तू बनाकर ले जा रहा था। साहूकार ने उसकी तलाशी ली। उसके पास सत्तू के अलावा कुछ नहीं मिला।
चांद निकल आया था और ब्राह्मणी सत्तू का इंतजार ही कर रही थी।
साहूकार ने कहा कि आज से तुम्हारी पत्नी को मैं अपनी धर्म बहन मानूंगा। उसने ब्राह्मण को सत्तू, गहने, रुपए, मेहंदी, लच्छा और बहुत सारा धन देकर ठाठ से विदा किया। सबने मिलकर कजली माता की पूजा की। जिस तरह ब्राह्मण के दिन फिरे वैसे सबके दिन फिरे कजली माता की कृपा सब पर हो।
कजरी तीज पर प्रचलित परंपरा
- इस महिलाएं पति की लम्बी आयु के लिए कजली तीज का व्रत रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याएं अच्छा वर पाने के लिए यह व्रत करती हैं।
- कजरी तीज पर जौ, गेहूं, चने और चावल के सत्तू में घी और मेवा मिलाकर तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं। चंद्रोदय के बाद फलाहार या सत्तू का भोजन करके व्रत तोड़ते हैं।
- इस दिन गायों की विशेष रूप से पूजा की जाती है। पूजा उपरांत आटे की सात लोइयां बनाकर उन पर घी, गुड़ रखकर गाय को खिलाया जाता है।
- कजली तीज पर घर में झूले डाले जाते हैं और महिलाएं एकत्रित होकर नाचती-गाती हैं।
- इस दिन कजरी गीत गाने की विशेष परंपरा है। यूपी और बिहार में लोग ढोलक की थाप पर कजरी गीत गाते हैं।
कजरी तीज का महत्व
कजली तीज सुहागिन महिलाओं के लिए विशेष त्यौहार माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं पति की लम्बी आयु और परिवार की सुख और समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती है। इसके अलावा अच्छे वर प्राप्ति के लिए कुंवारी कन्याएं भी इस व्रत का पालन करती है। मान्यता है कि सच्चे मन और पूर्ण विधि विधान से इस व्रत का पालने करने वाली महिलाओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।
कजरी तीज क्यूँ मनाई जाती है
कजली तीज से जुड़ी कई कहानियां है जिन्हें कजरी तीज मनाने का कारण माना जाता हैं। जिसमें से सबसे प्रचलित कहानी इस प्रकार है: –
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, कजली मध्य भारत में स्थित एक घने जंगल का नाम था। जंगल के आस-पास का क्षेत्र राजा दादूरई द्वारा शासित था। वहाँ रहने वाले लोग अपने स्थान कजली के नाम पर गाने गाते थे ताकि उनकी जगह का नाम लोकप्रिय हो सकें।
कुछ समय पश्चात् राजा दादूरई का निधन हो गया, उनकी पत्नी रानी नागमती ने खुद को सती प्रथा में अर्पित कर दिया। इसके दुःख में कजली नामक जगह के लोगों ने रानी नागमती को सम्मानित करने के लिए राग कजरी मनाना शुरू कर दिया।
इसके अलावा, इस दिन को देवी पार्वती को सम्मानित करने और उनकी पूजा करने के लिए मनाया जाता है क्योंकि यह तीज अपने पति के लिए एक महिला (देवी पार्वती) की भक्ति और समर्पण को दर्शाती हैं।
देवी पार्वती भगवान् शिव से शादी करने की इच्छुक थी। शिव ने पार्वती से उनकी भक्ति साबित करने के लिए कहा। पार्वती ने शिव द्वारा स्वीकार करने से पहले, 108 साल एक तपस्या करके अपनी भक्ति साबित की।
भगवन शिव और पार्वती का दिव्य संघ भाद्रपद महीने के कृष्णा पक्ष के दौरान हुआ था। यही दिन कजरी तीज के रूप में जाना जाने लगा। इसलिए बड़ी तीज या कजरी तीज के दिन देवी पार्वती की पूजा करने के लिए बहुत शुभ माना जाता हैं।