हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन मनाया जाता है। इस व्रत का पालन विशेषकर उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बिहार की सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए करती है। कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश व तमिलनाडु में हरतालिका तीज को गौरी हब्बा के नाम से जाना जाता है। इस व्रत में महिलाएं भगवान शंकर और माता गौरी की पूजा करती है।
हरतालिका व्रत को करवाचौथ से भी कठिन माना जाता है। क्योंकि करवाचौथ में चांद देखने के बाद व्रत तोड़ दिया जाता है वहीं इस व्रत को पूरे दिन निराहार और निर्जला रहकर किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात ही व्रत तोड़ा जाता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शंकर को पति के रूप में पाने के लिए किया था। इसीलिए ऐसा माना जाता है कि इस व्रत को करने वाली स्त्रियां पार्वती जी के समान ही सुखपूर्वक पतिरमण करके शिवलोक को जाती हैं।
एक पौराणिक कथा में हरतालिका तीज एवं उसके महत्व का उल्लेख मिलता है। हरतालिका शब्द, हरत व आलिका से मिलकर बना है, जिसका अर्थ क्रमशः अपहरण व स्त्रीमित्र (सहेली) होता है। हरतालिका तीज की कथा के अनुसार, पार्वतीजी की सहेलियां उनका अपहरण कर उन्हें घने जंगल में ले गई थीं। ताकि पार्वती जी की इच्छा के विरुद्ध उनके पिता उनका विवाह भगवान विष्णु से न कर दें।
हरतालिका तीज व्रत पर अनिवार्यता और ध्यान रखने योग्य बातें
- हरतालिका तीज व्रत निराहार और निर्जला रहकर किया जाता है। व्रत के बाद अगले दिन पूजा करके जल ग्रहण करने का विधान है।
- एक बार इस व्रत को प्रारम्भ करने के बाद, इसको छोड़ा नहीं जाता है। प्रत्येक वर्ष इस व्रत का विधि-विधान से पालन करना चाहिए।
- इस व्रत का पालन करनी वाली महिला का रात्रि में शयन निषेध है। उसे रात में सोना नहीं चाहिए।
- हरतालिका तीज व्रत के दिन रात्रि जागरण किया जाता है। रात में भजन-कीर्तन करना चाहिए।
- इस दिन महिलाओं को पूर्ण सिंगार करना चाहिए।
- व्रत के दिन महिलाओं को अपने पति से किसी भी प्रकार का झगड़ा या अपशब्द नहीं कहने चाहिए।
साल 2022 में तीज त्यौहार कब है?
तीज त्यौहार साल 2022 को निम्न तिथियों को पड़ रहे है।
हरियाली तीज – रविवार, 31 जुलाई
कजरी तीज – रविवार, 14 अगस्त
हरतालिका तीज – मंगलवार, 30 अगस्त
हरतालिका तीज मंगलवार, 30 अगस्त 2022 को मनाई जाएगी।
तृतीया तिथि प्रारम्भ – 29 अगस्त 2022 को शाम 03 बजकर 20 मिनट से
तृतीया तिथि समाप्त – 30 अगस्त 2022 को शाम 03 बजकर 33 मिनट तक
प्रातःकाल पूजा मुहूर्त – सुबह 05 बजकर 58 मिनट से सुबह 08 बजकर 31 मिनट तक
पूजा मुहूर्त अवधि – 02 घंटे 33 मिनट
पूजा सामग्री और पूजा विधि
हरतालिका तीज पर माता पारवती और भगवान शिव की विधि विधान से पूजा की जाती है। पूजा के लिए, चौकी, प्रतिमा बनाने के लिए बालू या काली मिट्टी, केले के पत्ते, फूल, फूल माला, फल, मिठाई, स्वच्छ जल, बेल पत्र, दूर्वा, भांग, धतूरा, शमी पत्र, सुहाग की पिटारी, धोती, अंगोछा, ओढ़नी, चावल, कलश, धूप या अगरबत्ती, सिक्का, पान, सुपारी, नारियल, आम की टहनी, दीपक, देशी घी, माचिस, हल्दी, कुमकुम, रोली, कलावा, जनेऊ, ककड़ी, हलवा, प्रसाद आदि सामग्री एकत्र कर लें।
हरतालिका पूजा के लिए सुबह का समय उचित माना गया है। यदि किसी कारणवश प्रातःकाल पूजा कर पाना संभव नहीं है तो प्रदोषकाल में शिव-पार्वती की पूजा की जा सकती है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व उठकर नित्यकर्म से निपटकर और नहा धोकर पूरा शृंगार करती है। व्रत का संकल्प लेने के बाद हरतालिका तीज की पूजा निम्न प्रकार से करें: –
- सर्वप्रथम बालू रेत व काली मिट्टी से भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा अपने हाथों से बनाएं।
- इसके बाद पूजा स्थल पर फूलों से सजाकर एक चौकी रखें। उस चौकी पर केले के पत्तों का मंडप बनाकर उसपर भगवान गणेश, भगवान शिव और माता पार्वती प्रतिमा स्थापित करें।
- फिर चौकी पर चावल से अष्टदल कमल का निर्माण करें और उस पर कलश की स्थापना करें। कलश में जल, अक्षत, सुपारी और सिक्के डाल दें। साथ ही आम के पत्ते रखकर उसपर नारियल रख दें।
- इसके बाद देवताओं का आह्वान करते हुए, सर्वप्रथम भगवान गणेश की, उसके बाद भगवान शिव और माता पार्वती की षोडशोपचार पूजन करें।
- गणेश जी और मां पार्वती को पीले चावल अर्पित करें। महादेव को सफ़ेद चावल, बेलपत्र, भांग, धतूरा, शमी के पत्ते आदि अर्पित करें। इसके बाद उन्हें बारी-बारी से कलावा अर्पित करें और गणेश जी व भगवान शिव को जनेऊ अर्पित करें।
- माता पार्वती को सुहाग की पिटारी में श्रृंगार की चीजें अर्पित करें। शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाएं। इस सभी सामग्रियों की पूजा उपरांत ब्राह्मण-ब्राह्मणी को दान कर देना चाहिए।
- इसके बाद हरतालिका तीज की व्रत कथा पढ़ें और सुनें। भगवान गणेश, महादेव और माता पार्वती की आरती करें और फिर उन्हें मिठाई का भोग लगाएं।
- व्रत के दिन रात्रि में भजन-कीर्तन करते हुए रात्रि जागरण करें। सुबह आरती के बाद माता पार्वती को सिंदूर चढ़ाएं व ककड़ी-हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलें।
हरतालिका व्रत कथा
यह व्रत कथा शिवजी ने ही मां पार्वती को सुनाई थी। शिव भगवान ने इस कथा में मां पार्वती को उनका पिछला जन्म याद दिलाया था। कथा इस प्रकार से है: –
‘हे गौरा, पिछले जन्म में तुमने मुझे पाने के लिए बहुत छोटी उम्र में कठोर तप और घोर तपस्या की थी। तुमने ना तो कुछ खाया और ना ही पीया बस हवा और सूखे पत्ते चबाएं। जला देने वाली गर्मी हो या कंपा देने वाली ठंड तुम नहीं हटीं। डटी रहीं। बारिश में भी तुमने जल नहीं पिया। तुम्हें इस हालत में देखकर तुम्हारे पिता दु:खी थे। उनको दु:खी देख कर नारदमुनि आए और कहा कि मैं भगवान विष्णु के भेजने पर यहां आया हूं। वह आपकी कन्या से विवाह करना चाहते हैं। इस बारे में मैं आपकी राय जानना चाहता हूं।’
नारदजी की बात सुनकर आपके पिता बोले अगर भगवान विष्णु यह चाहते हैं तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं।
परंतु जब तुम्हें इस विवाह के बारे में पता चला तो तुम दुःखी हो गईं। तुम्हारी एक सहेली ने तुम्हारे दुःख का कारण पूछा तो तुमने कहा कि मैंने सच्चे मन से भगवान शिव का वरण किया है, किन्तु मेरे पिता ने मेरा विवाह विष्णुजी के साथ तय कर दिया है। मैं विचित्र धर्मसंकट में हूँ। अब मेरे पास प्राण त्याग देने के अलावा कोई और उपाय नहीं बचा। तुम्हारी सखी बहुत ही समझदार थी। उसने कहा- प्राण छोड़ने का यहां कारण ही क्या है? संकट के समय धैर्य से काम लेना चाहिए। भारतीय नारी के जीवन की सार्थकता इसी में है कि जिसे मन से पति रूप में एक बार वरण कर लिया, जीवनपर्यन्त उसी से निर्वाह करें। मैं तुम्हें घनघोर वन में ले चलती हूं जो साधना स्थल भी है और जहां तुम्हारे पिता तुम्हें खोज भी नहीं पाएंगे। मुझे पूर्ण विश्वास है कि ईश्वर अवश्य ही तुम्हारी सहायता करेंगे।
तुमने ऐसा ही किया। तुम्हारे पिता तुम्हें घर में न पाकर बड़े चिंतित और दुःखी हुए। इधर तुम्हारी खोज होती रही उधर तुम अपनी सहेली के साथ नदी के तट पर एक गुफा में मेरी आराधना में लीन रहने लगीं। तुमने रेत के शिवलिंग का निर्माण किया। तुम्हारी इस कठोर तपस्या के प्रभाव से मेरा आसन हिल उठा और मैं शीघ्र ही तुम्हारे पास पहुंचा और तुमसे वर मांगने को कहा तब अपनी तपस्या के फलीभूत मुझे अपने समक्ष पाकर तुमने कहा, ‘मैं आपको सच्चे मन से पति के रूप में वरण कर चुकी हूं। यदि आप सचमुच मेरी तपस्या से प्रसन्न होकर यहां पधारे हैं तो मुझे अपनी अर्धांगिनी के रूप में स्वीकार कर लीजिए। तब ‘तथास्तु’ कहकर मैं कैलाश पर्वत पर लौट गया।
उसी समय गिरिराज अपने बंधु-बांधवों के साथ तुम्हें खोजते हुए वहां पहुंचे। तुमने सारा वृतांत बताया और कहा कि मैं घर तभी जाउंगी अगर आप महादेव से मेरा विवाह करेंगे। तुम्हारे पिता मान गए औऱ उन्होने हमारा विवाह करवाया। इस व्रत का महत्व यह है कि मैं इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मनवांछित फल देता हूं। इस पूरे प्रकरण में तुम्हारी सखी ने तुम्हारा हरण किया था इसलिए इस व्रत का नाम हरतालिका व्रत हो गया।
हरतालिका तीज व्रत का पौराणिक महत्व
इस व्रत को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। तभी से अच्छे पति की कामना और पति की दीर्घायु के लिए कुंवारी कन्या और सौभाग्यवती स्त्रियां हरतालिका तीज का व्रत रखती हैं और भगवान शिव व माता पार्वती की पूजा-अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं।
हरतालिका व्रत की अनिवार्यता
इस व्रत को कुमारी कन्यायें और सुहागिन महिलाएं दोनों की रख सकती है। परन्तु एक बार व्रत रखने से जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला किसी कारणवश इस व्रत को नहीं रख सकती या बहुत बीमार है, तो उसके बदले में दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रखने का विधान है। ऐसा करने से व्रत की नियमितता बनी रहती है और व्रत खंडित नहीं होता है।
व्रत का उद्यापन
इस व्रत के व्रती को शयन का निषेध है। इसके अलावा उसे रात्रि में भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण भी करना पड़ता है। प्रातः काल स्नान करने के पश्चात्, माता गौरी की विधि विधान से पूजा करें एवं व्रत का उद्यापन करें। उसके बाद श्रद्धा एवं भक्ति पूर्वक किसी सुपात्र सुहागिन महिला को श्रृंगार सामग्री ,वस्त्र ,खाद्य सामग्री ,फल ,मिष्ठान्न एवं यथा शक्ति आभूषण का दान करना चाहिए। यह व्रत बहुत ही सौभाग्यशाली माना जाता है। प्रत्येक सुहागिन स्त्री इस व्रत को रखने में अपना परम सौभाग्य समझती है।