भाद्रपद मास के आगमन के साथ ही गणेश उत्सव की तैयारियां शुरू हो जाती है। गणेश उत्सव को गणेश चतुर्थी या विनायक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यह त्यौहार भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी को समर्पित है। गणेश चतुर्थी का पर्व पूरे भारत में हर्षोउल्लाश के साथ मनाया जाता है। गणेश उत्सव सावन के पवित्र मास के बाद आता है। भाद्रमास में कृष्ण जन्माष्टमी के बाद यह दूसरा प्रमुख त्यौहार है।
गणेश चतुर्थी का त्यौहार प्रत्येक वर्ष भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। इस वर्ष यह त्यौहार 31 अगस्त 2022, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन घर-घर गणेश जी की स्थापना की जाती है। घरों के अलावा सार्वजनिक जगहों पर पंडाल सजाकर उसमें भी गणेश जी स्थापना की जाती है। गणेश जी की स्थापना से लेकर 10 दिनों तक उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद 11वें दिन गणेश जी को पूरे गाजे-बाजे के साथ विदा किया जाता है। यानि कि गणेश भगवान की प्रतिमा का निकटतम जलास्य में विसर्जन कर दिया जाता है। भगावन को विदाई देने के साथ ही भक्त उनके अगले साल जल्दी आने की कामना करते है।
शास्त्रों में भगवान गणेश जी को ज्ञान, बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य का देवता माना गया है। सभी के संकट दूर करने की वजह से इन्हें विघ्नहर्ता के रूप में भी पूजा जाता है। किसी भी शुभ कार्य को प्रारम्भ करने से पहले सर्वप्रथम गणेश जी का पूजन किया जाता है। एक पौराणिक कथा अनुसार हिन्दुओं के प्रमुख त्यौहार रक्षाबंधन की परंपरा की शुरुआत श्री गणेश से जुडी हुई है।
गणेश चतुर्थी 2022 दिन, शुभ मुहूर्त और पूजा समय
चतुर्थी तिथि का प्रारंभ: मंगलवार, 30 अगस्त 2022, दोपहर 03 बजकर 33 मिनट से
श्री गणेश चतुर्थी तिथि सपापन: बुधवार, 31 अगस्त 2022, दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक
गणेश चतुर्थी पूजा समय – 31 अगस्त, 11 बजकर 05 मिनट से दोपहर 01 बजकर 38 मिनट तक
कुल पूजा अवधि – 02 घण्टे 33 मिनट
गणेश जी पूजा के लिए जरूरी सामग्री
गणेश चतुर्थी पर पूजा करने की विधि
गणेश चतुर्थी पर पूजा की शुरुआत भगवान गणेश की मिट्टी की मूर्ती स्थापना से होती है। इसके पश्चात मूर्ती को गंगा जल मिश्रित शुद्ध जल से स्नान कराया जाता है। फिर मूर्ती को सुन्दर वस्त्रों, आभुषणों और फूलों से सजाया जाता है। दीपक जलाकर भगवान को विभिन्न व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। तत्पश्चात विभिन्न भजन और मन्त्रों का जाप करते हुए भगवान की आरती उतारी जाती है। पूजा समाप्ति पर सभी को भगवान का प्रसाद जरूर ग्रहण करना चाहिए। भगवान गणेश जी की दिन में दो बार, सुबह और शाम, निश्चित तौर पर पूजा करनी चाहिए।
गणेश चतुर्थी पर मंत्र जाप
गणेश चतुर्थी समापन और विसर्जन तिथियां और शुभ मुहूर्त
परम्परागत तौर पर, हिन्दू धर्म में पूजा का समापन विसर्जन या उत्थापना के साथ होता है। वैसे तो गणेश विसर्जन चतुर्थी तिथि के दिन पूजा करने के बाद भी किया जा सकता है। परन्तु, चतुर्थी तिथि के दिन विसर्जन का प्रचलन लगभग न के बराबर है। भक्तगण अपनी सुविधा के अनुसार गणेश विसर्जन कर सकते है। अगर गणेश विसर्जन के लिए आपके घर के पास उपयुक्त जलशय नहीं है, तो आप गणेश प्रतिमा को घर में ही बाल्टी या टब में भी विसर्जित कर सकते है।
डेढ़ दिन के बाद गणेश विसर्जन तिथि और शुभ मुहूर्त
घरों में स्थापित भगवान की मूर्ती के विसर्जन के लिए ये सबसे लोकप्रिय दिन है। स्थापना के अगले दिन, भक्तगण पूजा करने के बाद मूर्ती को दोपहर बाद विसर्जित कर सकते है। चूँकि, गणेश स्थापना चतुर्थी तिथि के मध्याह्न में होती है, और विसर्जन, दोपहर बाद, इसीलिए इसे डेढ़ दिन में गणेश विसर्जन कहा जाता है। इस वर्ष डेढ़ दिन के बाद गणेश विसर्जन दिन शनिवार, 11 सितम्बर 2021 को होगा। विसर्जन नीचे दिए मुहूर्त अनुसार किया जा सकता है।
प्रातः मुहूर्त – दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से दोपहर 03 बजकर 32 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त – शाम 05 बजकर 07 मिनट से शाम 06 बजकर 43 मिनट तक
सायाह्न मुहूर्त – शाम 06 बजकर 43 मिनट से रात्रि 09 बजकर 32 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त – रात्रि 12 बजकर 21 मिनट से मध्यरात्रि 01 बजकर 46 मिनट तक
उषाकाल मुहूर्त – 02 सितम्बर सुबह 03 बजकर 10 मिनट से सुबह 05 बजकर 59 मिनट तक
तीसरे, पांचवे और सातवें दिन गणेश विसर्जन तिथि और शुभ मुहूर्त
डेढ़ दिन के बाद भक्तगण तीसरे, पांचवे व सातवें दिन भी गणेश विसर्जन करते है। विसर्जन की सभी तिथियां विषम संख्या में पड़ती है। इन दिनों पड़ने वाली तिथियों और सुबह मुहूर्त की जानकारी नीचे दी गई है।
तीसरे दिन गणेश विसर्जन –
विसर्जन तिथि – शुक्रवार, 02 सितम्बर 2022
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – सुबह 05 बजकर 59 मिनट से सुबह 10 बजकर 45 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त (चर) – शाम 05 बजकर 06 मिनट से शाम 06 बजकर 42 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 12 बजकर 21 मिनट से दोपहर 01 बजकर 56 मिनट
रात्रि मुहूर्त (लाभ) – रात्रि 09 बजकर 31 मिनट से रात्रि 10 बजकर 56 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 03 सितम्बर, मध्यरात्रि 12 बजकर 21 मिनट से सुबह 04 बजकर 35 मिनट तक
पांचवे दिन गणेश विसर्जन
विसर्जन तिथि – रविवार, 04 सितम्बर 2022
प्रातः मुहूर्त (चर, लाभ, अमृत) – सुबह 07 बजकर 35 मिनट से दोपहर 12 बजकर 20 मिनट तक
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 01 बजकर 55 मिनट से दोपहर 03 बजकर 30 मिनट
सायाह्न मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – शाम 06 बजाकर 39 मिनट से रात 10 बजाकर 55 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त (लाभ) – 05 सितम्बर, मध्यरात्रि 01 बजकर 45 मिनट से भोर में 03 बजाकर 11 मिनट तक
उषाकाल मुहूर्त (शुभ) – 05 सितम्बर, सुबह 04 बजाकर 36 मिनट से सुबह 06 बजाकर 01 मिनट तक
सातवें दिन गणेश विसर्जन
अपराह्न मुहूर्त (शुभ) – दोपहर 03 बजाकर 28 मिनट से शाम 05 बजाकर 03 मिनट तक
सायाह्न मुहूर्त (लाभ) – रात 08 बजाकर 03 मिनट से रात 09 बजाकर 28 मिनट तक
रात्रि मुहूर्त (शुभ, अमृत, चर) – 07 सितम्बर 10:54 पी एम से 03:11 ए एम,
अनंत चतुर्थी पर गणेश विसर्जन
अनंत चतुर्थी तिथि स्थापना के 11वें दिन पड़ती है। इस दिन सार्वजनिक पंडालों और घरों की शेष मूर्तियों का विसर्जन कर दिया जाता है। यह विसर्जन का सबसे लोकप्रिय दिन है। इस दिन लोग स्थापना स्थान से लेकर विसर्जन स्थल तक नाचते गाते हुए जाते है। भगवान को श्रद्धापूर्वक विदाई देकर उनसे अगले वर्ष जल्दी आने की प्रार्थना करते है। इस वर्ष अनंत चतुर्थी तिथि 09 सितम्बर 2022 को पड़ेगी।

गणेश चतुर्थी को चन्द्रमा के दर्शन क्यूँ नहीं करने चाहिए
वर्जित चन्द्रदर्शन अवधि – 11 घण्टे 44 मिनट
चंद्र दर्शन मिथ्या दोष निवारण मंत्र
सिंहः प्रसेनमवधीत्सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मारोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
गणेश उत्सव के अंत में गणेश प्रतिमाओं को पानी में क्यों विसर्जित किया जाता है?
पुराणों के अनुसार, भगवान गणेश ने महाभारत ग्रन्थ को लिखा था। वेद व्यास जी महाभारत कथा सुना रहे थे और भगवान गणेश उसको अक्षरश: लिखा रहे थे। वेद व्यास जी लगातार 10 दिनों तक कथा सुनाते रहे और गणेश जी लिखते रहे। कथा समाप्ति के पश्चात जब वेद व्यास जी ने गणेश जी को देखा तो उनके शरीर का तापमान बहुत बढ़ गया था। गणेश जी के शारीरिक तापमान को कम करने के लिए वेद व्यास ने उनको पास के शीतल कुंड में डूबा दिया। उसी दिन से गणेश विसर्जन की यह मान्यता चली आ रही है।
श्री गणेश महोत्सव की सार्वजनिक पूजा की शुरुआत कब, कहाँ और कैसे हुई ?
गणेश चतुर्थी पर सार्वजनिक पूजा प्रारम्भ होने की कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है। हालाँकि कुछ इतिहासकारों का मत है कि, सन् 1630-1680 के दौरान छत्रपति शिवाजी महाराज के समय गणेश पूजा पर सार्वजनिक समाहरोह आयोजित होते थे। माना जाता है कि शिवजी महाराज गणेश भगवान को कुलदेवता के रूप में पूजते थे। इसीलिए गणेशोत्सव उनके शासनकाल के दौरान नियमित रूप से मनाया जाता था।
पेशवाओं के अंत के साथ ही, गणेश उत्सव पर सार्वजनिक समाहरोह बंद हो गए और यह त्यौहार एक पारिवारिक उत्सव बन गया। सन् 1893 में बाल गंगाधर लोकमान्य तिलक ने इस त्यौहार का सार्वजनिक रूप पुनर्जीवित किया। उन्होंने समाज में व्याप्त जातीय भेदभाव दूर करने और सामाजिक एकजुटता बनाने के लिए गणेश महोत्सव का सार्वजनिक आयोजन चालू कराया। उन्होंने सार्वजनिक पंडाल बनाए। जहाँ कोई भी अपनी जाति और धर्म के बावजूद प्रार्थना कर सकता है।
इस तरह गणेश चतुर्थी पर सार्वजनिक पूजा का प्रचलन चालू हुआ। जिसका आयोजन आज भी पूरे भारत में होता है। लेकिन महाराष्ट्र में गणेश उत्सव/गणेश चतुर्थी का अलग ही महत्त्व है। वहाँ गणेश उत्सव का व्यापक रूप देखने को मिलता है।
क्या है गणेश चतुर्थी की कथा
गणेश चतुर्थी के दिन गणेश कथा सुनने और पढ़ने विशेष लाभकारी होता है। व्रत का सम्पूर्ण लाभ पाने के लिए गणेशग जी कथा का पाठ जरूर करना चाहिए।
शिवपुराण के अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड के अनुसार, एक बार माता पार्वती स्नान करने के लिए जा रही थी। द्वारपाल की अनुपस्थिति में माता पार्वती ने अपने तन की मैल से एक बालक उत्पन्न करके उसको द्वारपाल बना दिया। पार्वती जी ने उस बालक को निर्देश दिया कि, जब तक मैं स्नान न करलूं, तब तक किसी भी पुरुष को अंदर प्रवेश मत करने देना।
थोड़ी देर बाद जब भगवान शिवजी ने प्रवेश करना चाहा, तो बालक ने उनको रोक दिया। बालक की उत्पत्ति से अनजान शिवजी ने इसे अपना अपमान समझा और अपने शिवगणों को उस बालक को द्वार से हटाने का आदेश दिया। आदेश पाकर शिवगणों ने बालक से भयंकर युद्ध किया, परन्तु कोई भी उस बालक को पराजित नहीं कर सका। तत्पश्चात भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सिर काट दिया।
माता पार्वती का माँ काली का वेश धारण करना
अपने बालक की अन्याय पूर्ण हत्या किये जाने से माता पार्वती अत्यंत कुपित हो उठी। माता पार्वती ने तब काली का वेश धारण किया और विश्व विनाश के लिए तांडव करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने भगवान शिव से माता जगदम्बा को शांत करने की प्रार्थना की। शिवजी के निर्देश पर भगवन विष्णु ने उत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर करकर ले आए। भगवान शंकर ने गज के सिर को बालक के धड़ से जोड़कर उसको पुनर्जीवित कर दिया। अपने बालक को पुनः जीवित देखकर माता जगदम्बा का क्रोध शांत हो गया।
तब माता पार्वती और भगवान शंकर ने गणेश जी को सभी देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्य होने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अर्घ्य देकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्ष पर्यन्त श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।