द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा

भाजपा ने राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को क्यों चुना?

आगामी राष्ट्रपति चुनाव के लिए मंच तैयार हो गया है। निर्वाचन आयोग में भी चुनाव के लिए अपनी कमर कस ली है। मंगलवार को सत्तारूढ़ भाजपा ने, विपक्ष के उम्मीदवार पूर्व भाजपाई एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के विरुद्ध, झारखंड की पूर्व राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू का नाम प्रस्तावित किया, जोकि पूर्वी भारत की एक आदिवासी महिला नेता है।

राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू और यशवंत सिन्हा दोनों का झारखंड से पुराना रिश्ता है। जहाँ द्रौपदी मुर्मू 2015 से 2021 तक झारखंड की  राज्यपाल के पद पर कार्य किया है वहीं यशवंत सिन्हा राज्य के हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र से सांसद थे। अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद, द्रौपदी मुर्मू अपने पैतृक शहर रायरंगपुर, ओडिशा में रहने के लिए चली गईं। वहीं यशवंत सिन्हा, भाजपा छोड़ने के बाद, पिछले साल तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे।

अब जब सत्ताधारी और विपक्ष दोनों ने अपने उम्मीदवार मैदान में उतार दिया है। तब अब लोग ये जानना चाहते है कि दोनों उम्मीदवारों को किन कारणों से चुना गया है। दोनों में से कौन बेहतर है और कैसे एक दूसरे से अलग है। लोगों के इन्हीं सवालों का जवाब हमने इस लेख में देने की कोशिश की है।

राष्ट्रपति चुनाव – सत्तारूढ़ दल या भाजपा ने राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू को क्यों चुना?

राष्ट्रपति पद के लिए उम्मीदवार के रूप में द्रौपदी मुर्मू के नाम का चयन करके भाजपा ने आगामी विधानसभा चुनावों में अपनी जीत को सुनिश्चित करने की कोशिश की है। द्रौपदी मुर्मू का चुनाव एनडीए की विचार प्रक्रिया के अनुरूप भी है, जिसने 2017 में रामनाथ कोविंद, एक दलित, को राष्ट्रपति पद के चेहरे के रूप में चुना। रामनाथ कोविंद, जो उत्तर प्रदेश के एक छोटे से कोली समुदाय से हैं, एक गरीब किसान के घर में पैदा हुए और अंततः भारत के दूसरे दलित राष्ट्रपति बने।

द्रौपदी मुर्मू को चुनकर भाजपा देश के आदिवासी इलाकों जैसे मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में अपने वोट प्रतिशत को बढ़ा सकती है, क्यूंकि इन क्षेत्रों में अधिवासी संख्या में ज्यादा है। राजनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, मुर्मू के पास यशवंत सिन्हा की तुलना में राष्ट्रपति के रूप में चुने जाने की अधिक संभावना है, क्योंकि वह एक महिला हैं और एक विनम्र आदिवासी पृष्ठभूमि से आने के बावजूद पर्याप्त राजनीतिक अनुभव है। निर्वाचित होने पर द्रौपदी मुर्मू भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति और देश की दूसरी महिला राष्ट्रपति बन जाएंगी।

कौन हैं द्रौपदी मुर्मू – संक्षिप्त जीवन एवं राजनीतिक परिचय

64 वर्षीय, राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू  का जन्म ओडिशा के एक पिछड़े जिले मयूरभंज के एक गरीब संथाल आदिवासी परिवार में 1958 में हुआ था। परिवार की कमजोर आर्थिक स्थिति एवं चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों के बावजूद इन्होनें अपनी पढ़ाई पूरी की। इन्होनें रमादेवी महिला कॉलेज, भुवनेश्वर से अपनी बीए की उपाधि प्राप्त की।

इन्होनें अपने करियर की शुरुआत श्री अरबिंदो इंटीग्रल एजुकेशन एंड रिसर्च में मानद सहायक शिक्षक पद पर रहकर शुरू किया। इसके बाद इन्होनें 1979 और 1983 के बीच ओडिशा सिंचाई एवं बिजली विभाग में एक कनिष्ठ सहायक के पद पर कार्य किया। इस पद रहते हुए इन्होनें अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की। वह 1997 में रायरंगपुर जिला बोर्ड के पार्षद के रूप में चुनी गईं।

राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू – राजनीतिक परिचय

राष्ट्रपति पद उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू जी ने भाजपा की सदस्य बनकर रायरंगपुर एसटी मोर्चा के उपाध्यक्ष के रूप में कार्य किया। द्रौपदी मुर्मू साल 2000 और साल 2004 में रायरंगपुर से ओडिशा विधान सभा की सदस्य चुनी गई। बीजद-भाजपा गठबंधन में मंत्री रहते हुए, इन्होनें परिवहन और वाणिज्य, पशुपालन और मत्स्य पालन विभागों का कार्यभार संभाला। साल 2007 में, ओडिशा विधानसभा ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक के लिए ‘नीलकंठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया।

इसके अलावा इन्होनें भाजपा में कई संगठनात्मक पदों पर कार्य किया है। वह साल 2002 से 2009 तक भाजपा एसटी मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की सदस्य रहीं। साथ ही साल 2006 और 2009 के बीच, वह ओडिशा में भाजपा के एसटी मोर्चा की प्रमुख थीं। द्रौपदी मुर्मू ने साल 2013 से 2015 तक भाजपा के एसटी मोर्चा के राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य रही और साल 2010 और 2013 में मयूरभंज (पश्चिम) के भाजपा जिला प्रमुख के रूप में कार्य किया।

इसके बाद इन्होनें अपने राजनीतिक करियर के सबसे ऊँचे मुकाम को हासिल करते हुए, भारत के राष्ट्रपति द्वारा झारखड़ की पहली महिला राज्यपाल नियुक्त की गई। इन्होनें साल 2015 से 2021 तक झारखंड की राज्यपाल के रूप में कार्य किया। कार्यकाल समाप्त होने के बाद वह अपने पैतृक शहर रायरंगपुर, ओडिशा में रहने के लिए चली गईं।

विपक्ष ने यशवंत सिन्हा को क्यूँ चुना?

विपक्षी दलों के सर्वसम्मति के उम्मीदवार के रूप में यशवंत सिन्हा के नाम की घोषणा “अंतिम उपाय’ के तौर पर देखा जा रहा है। क्यूंकि विपक्ष ने यशवंत सिन्हा के नाम का ऐलान राकांपा प्रमुख शरद पवार, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम फारूक अब्दुल्ला और बंगाल के पूर्व राज्यपाल गोपालकृष्ण गांधी आदि दिग्गजों के दौड़ से बाहर होने के बाद किया है।

यशवंत सिन्हा की उम्मीदवारी ने एक बार फिर सोचने में विपक्ष की अक्षमता को साबित किया है। विपक्ष के पास शरद पावर, सीताराम येचुरी, ममता बनर्जी, लालू यादव, मल्लिकार्जुन खड़गे आदि जैसे दिग्गज एवं राजनीति में मंझे हुए राजनेता है। इसके बावजूद भी लम्बे विचार विमर्श के बाद, एक अप्रभावित पूर्व भाजपा नेता के नाम का चयन, विपक्ष में दूरदर्शी सोच की कमी को दर्शाता है।

संयुक्त विपक्ष के बयान के अनुसार, यशवंत सिन्हा “भारतीय गणराज्य के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक चरित्र और उसके संवैधानिक मूल्यों को बनाए रखने के लिए उल्लेखनीय रूप से योग्य हैं”। हालाँकि हाल के घटनाक्रमों का ध्यान से अध्ययन करने पर पता चलता है कि विपक्ष की नज़र में यशवंत सिन्हा ने अपनी यह साख, नरेंद्र मोदी की कड़वी आलोचना करके कमाई है, न की नौकरशाह से राजनेता के रूप में अपने स्वयं के रिकॉर्ड के रूप में। इसके अलावा, जिसके जरिए विपक्ष भाजपा को चुनौती देना चाहती है, उसका ही बेटा जयंत सिन्हा मौजूदा समय में भाजपा से लोकसभा सांसद है।

लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञों को, विपक्ष का यह कदम एकदम सही नहीं लग रहा है। विपक्ष यशवंत सिन्हा के जरिए अपनी एकजुटता को साबित करना चाहता है। परन्तु विपक्ष यह भूल जाता है कि ये वही यशवंत सिन्हा है जो गोधरा काण्ड के समय कैबिनेट मंत्री थे और अपना सारा जीवन भाजपा को समर्पित किया हुआ था। ऐसे में यशवंत सिन्हा के जीतने पर विपक्ष कैसे आपस में सामंजस बैठता है, देखने लायक होगा।

कौन हैं यशवंत सिन्हा – संक्षिप्त जीवन एवं राजनीतिक परिचय

84 वर्षीय,यशवंत सिन्हा का जन्म बिहार के पटना शहर के एक चित्रगुप्तवंशी कायस्थ परिवार में 1937 को हुआ था। यशवंत सिन्हा ने 1958 में राजनीति शास्त्र में अपनी स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। इसके उपरांत उन्होंने पटना विश्वविद्यालय में 1960 तक इसी विषय की शिक्षा दी।

साल 1960 में, यशवंत सिन्हा भारतीय प्रशासनिक सेवा में शामिल हुए और अपने कार्यकाल के दौरान कई महत्त्वपूर्ण पदों पर असीन रहते हुए सेवा में 24 से अधिक वर्ष बिताए।

यशवंत सिन्हा का राजनीतिक सफर

यशवंत सिन्हा ने 1984 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से इस्तीफा दे दिया और जनता पार्टी के सदस्य के रूप में सक्रिय राजनीति से जुड़ गए। 1986 में उनको पार्टी का अखिल भारतीय महासचिव नियुक्त किया गया और 1988 में उन्हें राज्य सभा का सदस्य चुना गया। साल 1989 में जनता दल के गठन होने के बाद उनको पार्टी का राष्ट्रीय महासचिव नियुक्त किया गया। उन्होंने चन्द्र शेखर के मंत्रिमंडल में नवंबर 1990 से जून 1991 तक वित्त मंत्री के रूप में कार्य किया।

1995 में वह भाजपा में शामिल हो गए और रांची से बिहार विधानसभा चुनाव जीते। बाद में उन्हें राज्यसभा के लिए मनोनीत किया गया। उन्होंने 1998, 1999 और 2009 में हजारीबाग लोकसभा क्षेत्र जीता। वह मार्च 1998 – जुलाई 2002 के बीच पीएम अटल बिहारी वाजपेयी के तहत फिर से वित्त मंत्री थे। वह जुलाई 2002 – मई 2004 के बीच विदेश मंत्री थे।

इन्होनें 2009 में भाजपा की सदस्य से इस्तीफ़ा देकर 13 मार्च, 2021 को अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए। टीएमसी में शामिल होने के बाद पार्टी ने उन्हें राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया।

आपका विचार

इस प्रकार हम देख सकते है कि एक तरफ जहां द्रौपदी मुर्मू ओडिशा के पिछड़े जिले की आदिवासी समुदाय से होते हुए भी राज्यपाल के पद तक का अपना सफर तय किया वहीं यशवंत सिन्हा न केवल राजनीति के जाने माने दिग्गज है बल्कि उनको प्रशासनिक सेवा का भी लम्बा अनुभव है। लेकिन राजनीति में उम्मीदवार का चुनाव, उसकी योग्यता के आधार पर नहीं अपितु राजनीतिक दलों के अपने निजी लाभों की पूर्ती के लिए होता है। तो, इन दोनों उम्मीदवारों को चुनने के पीछे राजनीतिक दलों का क्या लाभ है? आइये इस बात को भी समझते है।

अबतक इस लेख को पढ़ने के बाद पाठकों ने निर्णय ले लिया होगा कि भारत का अगला राष्ट्रपति किसे होना चाहिए। इस विषय में अपने विचार एवं सवाल आप हमें टिप्पणी करके बता सकते है। जिसका जवाब देने की हम पूरी कोशिश करेंगें।

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