धनतेरस से पांच दिनों तक चलने वाले दीपो के त्यौहार दीपावली की शुरुआत होती है। धनतेरस पूजा के बाद रूप चौदस या नरक चतुर्दशी और फिर दीपावली का त्यौहार आता है। दीपावली के अगले दिन अन्नकूट और गोवर्द्धन पूजा और फिर भाईदूज का पर्व मनाया जाता है।
हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रियोदशी तिथि को धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इसीदिन समुंद्र-मंथन के समय भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रगट हुए थे। इसीलिए यह तिथि धन्वंतरि जयंती, धनत्रयोदशी और धनतेरस के नाम से लोकप्रिय हुई।
धन्वंतरि को देवों के चिकित्सक है और उन्हें चिकित्सा के देवता के रूप में पूजा जाता है। यह दिन चिकित्सकों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण होता है। धनतेरस के इसी महत्त्व को मान्यता देते हुए, भारत सरकार सन् 2016 से धनतेरस को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मानती आ रही है।
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त 2022 दिन, तिथि व पूजा का शुभ मुहूर्त
इस वर्ष धनतेरस का पर्व रविवार, 23 अक्टूबर 2022 को मनाया जाएगा। धनतेरस के दिन पूजा का शुभ मुहूर्त का समय नीचे दिया हुआ है।
धनतेरस तिथि प्रारम्भ – रविवार, 23 अक्टूबर 2022
प्रदोष काल – शाम 05 बजकर 44 मिनट से रात 06 बजकर 05 मिनट तक
वृषभ काल – शाम 06 बजकर 58 मिनट से रात 08 बजकर 54 मिनट तक
धनतेरस पूजा का शुभ मुहूर्त – शाम 05 बजकर 44 मिनट से रात 06 बजकर 05 मिनट तक
धनत्रयोदशी/ धनतेरस पूजा की सामग्री
धनतेरस पर पूजा संपन्न करने के लिए आप निम्नलिखित सामग्री में से जितना संभव हो उतना एकत्र कर लें। पूजा के लिए पांच प्रकार के मणि पत्थर, इक्कीस पूरे कमल बीज, पांच सुपारी व पान, पंच श्रृंगार, तुलसी, अगरबत्ती, सिक्के, चंदन, लौंग, नारियल, दहीशरीफा, धूप, फूल, अक्षत, रोली, गंगा जल, माला, हल्दी, शहद, कपूर, पंचामृत आदि एकत्र करके पहले से ही रख लें।
धनत्रयोदशी/ धनतेरस पूजा कैसे करें या पूजा विधि क्या है?
इस दिन शुभ पूजा मुहूर्त में भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। घर के उत्तर दिशा में पूजा स्थल सबसे उत्तम रहता है। मंदिर में भगवान गणेश, माँ लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर की मूर्तियां स्थापित करें। पूजा के लिए शुद्ध घी का दीपक जलाएं। पहले भगवान गणेश और माता लक्ष्मी की आरती करें फिर भगवान धन्वंतरि और कुबेर की आरती उतारें। पूजा करते समय “ॐ ह्रीं कुबेराय नमः” मंत्र का जाप करें। आरती उपरांत सभी देवों को फूल अर्पण करें और भोग लगाएं। भगवान धन्वंतरि को पीली और कुबेर को सफ़ेद मिठाई का भोग लगाएं। फिर “धन्वन्तरि स्तोत्र” का पाठ करें।
धनतेरस पर यम के नाम दीपक जलाने की विधि
भगवान धन्वंतरि की पूजा उपरांत यम का दीपक जलाया जाता है। लकड़ी के बेंच या तख़्त पर रोली से स्वास्तिक का निशान बनायें। मिट्टी या आटे के चौमुखी दीपक को स्वास्तिक के मध्य रखें। दीपक को प्रज्वलित करें। दीप पर रोली का तिलक लगाकर अक्षत और फूल चढ़ाएं। दीपक में चीनी और एक रूपए का सिक्का डालें। तत्पश्चात परिवार के सभी सदस्यों को तिलक लगाएं और सभी लोग दीपक को प्रणाम करें। इसके बाद दीपक को घर के मुख्य द्वार पर रख दें। दीपक रखते समय ध्यान दें कि दीपक की लौ दक्षिण दिशा में होनी चाहिए। क्यूंकि दक्षिण दिशा को यमराज की दिशा माना जाता है। इस प्रकार दीपक जलाने से अकाल मृत्यु टल जाती है।
धनत्रयोदशी/ धनतेरस के दिन क्यूँ जलाया जाता है यम के नाम का दीपक ?
धनतेरस की संध्या में घर के आँगन और मुख्य द्वार पर दीप जलाने की प्रथा है। इस प्रथा के पीछे एक पौराणिक लोककथा है। कथा के अनुसार, एक समय हेम नामक एक राजा थे। दैवीय कृपा से उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। बालक की कुंडली से ज्ञात हुआ कि जिस दिन इस बालक का विवाह होगा उसके चार दिन बाद ही वह मृत्यु को प्राप्त होगा। राजा यह जानकर बहुत दुखी हुए और उसने बालक को ऐसी जगह भेज दिया जहाँ किसी स्त्री का पहुंचना असंभव था। परन्तु दैवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उधर चली गई। राजकुमार और राजकुमारी एक दूसरे को देखकर मोहित हो गए और दोनों ने गन्धर्व-विवाह कर लिया।
विधि के विधान अनुसार चार दिन बाद यमदूत राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। प्राण ले जाते समय राजकुमार की नवविवाहिता पत्नी का विलाप सुनकर यमदूतों का ह्रदय द्रवित हो उठा। परन्तु नियति अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा।
इस घटना के कुछ दिन उपरांत, यमराज ने अपने यमदूतों से पूछा कि क्या कभी तुम्हारे मन में प्राणियों को मृत्यु की गोद में सुलाते समय उनके लिए दया भाव नहीं आता है। तब यमदूतों ने यमराज को राजा हेम के पुत्र की अकाल मृत्यु की कथा सुनाई। साथ ही दूतों ने यमराज से विनती की – हे यमराज, क्या ऐसा कोई उपाय नहीं है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए।
दूत के इस प्रश्न का उत्तर देते हुए यम देवता ने कहा कि जो प्राणी शाम यम के नाम धनतेरस पूजा करके दक्षिण दिशा में दीपक जलाएगा, उसको अकाल मृत्यु का भय नहीं रहेगा। इसी मान्यता के अनुसार लोग इस दिन यम के नाम का दीपक घर के मुख्य द्वार पर रखते है।
धनतेरस पर पूजा का महत्व क्या है
समुंद्र मंथन के दौरान जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे तो उनके हाथो में अमृत कलश था। चूंकि भगवान धन्वंतरि कलश के साथ प्रकट हुए थे, इसीलिए इस दिन धातु से बनी चीजें खरीदना बेहद शुभ माना जाता है। मान्यता है कि इस दिन धन (वस्तु) खरीदने से उसमें तेरह गुना वृद्धि होती है। इस अवसर पर चांदी खरीदना भी शुभ माना जाता है। लोग इस दिन चांदी से बनी माता लक्ष्मी और श्री गणेश की प्रतिमा खरीदते है। इस दिन कुछ लोग धनिया के बीज भी खरीदते है। जिसे दीपावली के दिन लोग अपने बाग़ या खेतों में बोतें है।
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान धन्वंतरि, देव कुबेर और माता लक्ष्मी की पूजा करने से भक्तों को सुख-समृद्धि, धन-धान्य तथा वैभव का वरदान प्राप्त होता है। परंपरा अनुसार, इस दिन लोग अपने घरों में नए आभूषण, चांदी, नए बर्तन, नए कपड़े आदि चीजें लेकर आते है। ये चीजों घर में सकारातमकता लेकर आती है।
धनतेरस के दिन लोग अपने घर के आंगन और मुख्य द्वार पर दीपक जलाते है। मान्यता है कि दीपक जलने से घर में सुख समृद्धि व खुशहाली बनी रहती है। इस दिन लोग भगवान धन्वंतरि से अच्छे स्वस्थ की कामना भी करते है। माता लक्ष्मी और कुबेर देव से लोग धन-धान्य की प्राप्ति के लिए प्रार्थना करते है।
क्यूँ मनाया जाता है धनतेरस का त्यौहार
भारतीय संस्कृति में भगवान धन्वंतरि को आरोग्य, सेहत, आयु और तेज के आराध्य देवता के रूप में पूजते है। आज भी भारत में स्वस्थ और निरोगी काया को धन से ऊपर माना जाता है। “पहला सुख निरोगी काया, दूजा सुख घर में माया” कहावत भारत में आज भी प्रचलित है। इसीलिए दीपावली से पहले धनतेरस का त्यौहार मनाया जाता है।
पौराणिक कथाओं अनुसार भगवान धन्वंतरि भगवान विष्णु के अंशावतार है। समुंद्र मंथन के दौरान कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी के दिन भगवान धन्वंतरि हाथों में अमृत कलश लेकर प्रकट हुए। इसी अमृत का पान करके देवता निरोगी और अमर हो गए। इसीलिए भगवान धन्वंतरि को आरोग्य का देवता माना जाता है। हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, संसार में चिकित्सा विज्ञान के विस्तार और प्रसार के लिए भगवान विष्णु ने भगवान धन्वंतरि के रूप में अवतार लिया।
धनतेरस पर चांदी क्यूँ खरीदी जाती है?
इस दिन चांदी से बने माता लक्ष्मी और श्री गणेश, आभूषण, बर्तन, सिक्के आदि खरीदने का प्रचलन है। इस प्रचलन के पीछे मान्यता है कि चांदी को चन्द्रमा का प्रतीक माना गया है। चन्द्रमा जो व्यक्ति के जीवन में शीतलता प्रदान करता है और जिससे लोगों के मन में संतोष रूपी धन का वास होता है। भारतीय संस्कृति में संतोष को सबसे बड़ा धन कहा जाता है। जिस व्यक्ति के पास संतोष है वह स्वस्थ है, सुखी है और वही सबसे धनवान है। भगवान धन्वंतरि से लोग अच्छे स्वास्थ्य और सेहत रूपी धन की कामना करते है।
धनतेरस से जुडी भगवान विष्णु के वामन अवतार और राजा बलि की पौराणिक कथा
कथा के अनुसार, राक्षस राज बलि के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया। कार्तिक कृष्ण त्रियोदशी के दिन राजा बलि यज्ञ करा रहे थे और उसी समय भगवान वामन यज्ञ स्थल पर पहुँच गए। राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को वामन अवतार में पहचान लिया और राजा बलि को सत्य से अवगत कराया। साथ ही उन्होंने राजा बलि से आग्रह किया कि वामन कुछ भी मांगे उन्हें इंकार कर देना।
परन्तु राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी। भगवान वामन ने राजा बलि से तीन पग भूमि दान में मांगी। दान करने के लिए राजा बलि कमंडल से जल लेकर संकल्प लेने लगे। तभी राजा बलि को रोकने के लिए शुक्राचार्य लघु रूप में कमंडल के मुख पर बैठ गए। जिससे कमंडल से जल निकलने का मार्ग अवरुद्ध हो गया।
भगवान वामन शुक्राचार्य की इस चाल को समझ गए। उन्होंने अपने हाथ में रखे हुए कुश को इस प्रकार कमंडल में प्रवेश कराया कि शुक्राचार्य की एक आँख फूट गई। दर्द से छटपटाकर शुक्राचार्य कमंडल से बहार आ गए। इसके बाद राजा बलि ने तीन पग भूमि दान करने का संकल्प ले लिया।