सूचना प्रौद्योगिकी में लगाकर उन्नत तकनीक का विकास होता आया है। हम अपने स्मार्टफोन या कंप्यूटर उपकरणों के जरिए इंटरनेट सेवाओं का उपयोग करते है। आधुनिक युग में हमारा बहुत सा काम ऑनलाइन होता है। जिसमें इंटरनेट हमारी सहायत करना है। समय के साथ इंटरनेट स्पीड में सुधर होता आया है। 5G तकनीक के आने से इंटरनेट में जबरजस्त सुधर आने वाला है।
शुरआत के दिनों में हम 2G स्पेक्ट्रम का उपयोग करते थे। इसमें इंटरनेट की गति बहुत कम थी। जिससे ऑनलाइन काम करने में हमें बहुत समय लगता था। लेकिन समय के साथ तकनीक में सुधार होता गया। फिर 3G का दौर आया और वर्त्तमान में 4G तकनीक का उपयोग चल रहा है।
जिस प्रकार समय का चक्र आगे बढ़ता है, उसी प्रकार तकनिकी विकास भी होता रहता है। 4G तकनीक से आगे बढ़ते हुए हम 5G तकनीक की तरफ अग्रसर हो रहे है। अमेरिका, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया आदि देशों में 5G तकनीक का उपयोग शुरू हो गया है। भारत में यह सेवा वर्ष 2021 के अंत तक शुरू होने की सम्भावना है। हाल के दिनों में 5G तकनीक के बारें में बहुत से चर्चाएं हुई है। आपके भी मन में 5G को लेकर सवाल उठते होंगे। इस लेख में हमने आपके उन्ही सवालों का जवाब देने की कोशिश की है।
5G तकनीक क्या है?
इंटरनेट की दुनिया में 5G एक क्रन्तिकारी तकनीक है। 5G तकनीक से मोबाइल नेटवर्क पर डाउनलोडिंग और अपलोडिंग की गति बहुत बढ़ जाएगी। इस तकनीक का उपयोग करके ऑनलाइन कार्य बहुत तेजी से कर सकते है। इस तकनीक के जरिए संचार उपकरण वास्तविक समय में सहसंचार कर सकते है। 5G तकनीक अपने साथ न सिर्फ तेज़ इंटरनेट गति लेकर आएगा बल्कि तकनीक के दुनिया में आपको एक नई अनुभूति का अहसास कराएगा।
5G तकनीक के आ जाने से स्वचालित गाड़ियों, ऑग्मेंटेड रियलिटी और इंटरनेट ऑफ थिंग्स जैसी चीजों की परिकल्पना साकार होगी। यही नहीं विशेषज्ञों की माने तो आनेवाले समय में 5G की मदद से कृषि, शिक्षा, स्वास्थ, परिवहन, यातायात प्रबंधन, स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट्स आदि में क्रन्तिकारी परिवर्तन की उम्मीद है।
5G तकनीक में ‘G’ का क्या अर्थ है और इसकी विकास श्रृंखला
सूचना प्रौद्योगिकी में अभूतपूर्व विकास साल 1980 में आया। जब सूचना के क्षेत्र में 1G तकनीक का विकास हुआ। यहाँ ‘G’ का अर्थ ‘जनरेशन‘ से होता है। यह जनरेशन नेटवर्क के विकास को दर्शाता है। साल 1980 में आए 1G नेटवर्क में सिर्फ कॉल करने की सुविधा थी। इस समय के संचार उपकरण बहुत ही धीमे और भरी होते थे।
2G तकनीक
इसके बाद साल 1990 में 2G नेटवर्क का आगमन हुआ। इस नेटवर्क के उपयोग से कॉल के साथ साथ सन्देश भी भेजे जा सकते थे। आगे चलकर इसी नेटवर्क में GPRS तकनीक का विकास हुआ। GPRS तकनीक के जरिए इंटरनेट सेवा का उपयोग होने लगा। परन्तु इस समय इंटरनेट की रफ़्तार बहुत कम हुआ करती थी। जिससे सिर्फ ईमेल और छोटी फाइलें ही भेजे जा सकते थे।
3G तकनीक
साल 2003 में इस तकनीक में एक बेहद ही महत्वपूर्ण बदलाव हुआ। इस वर्ष 3G नेटवर्क का उपयोग प्रारम्भ हुआ। 3G तकनीक के आने से इंटरनेट की रफ़्तार में बहुत तेजी आयी। साथ ही संचार उपकरणों के आपस की संयोजकता में बहुत सुधार हुआ। अब इंटरनेट के जरिए बड़ी फाइलें भेजना संभव हो सका। साथ ही फिल्मों को डाउनलोड करके देखा जाने लगा।
4G व 4G VoLTE तकनीक
इंटरनेट के क्षेत्र में बड़ा सुधार साल 2009 में हुआ। इस वर्ष 4G तकनीक उपयोग के लिए उपलब्ध हुई। 4G नेटवर्क में हमें 100mbps की इंटरनेट स्पीड मिली। अब बड़ी से बड़ी फाइल को भेजना और डाउनलोड करना बेहद आसान हो गया था। साथ ही लोगों ने मोबाइल कालिंग में एक नया अनुभव प्राप्त किया। लोग अब वीडियो कालिंग का लुफ़्त उठा सकते थे। 4G तकनीक ने मोबाइल को एक मिनी कंप्यूटर में बदल दिया।
5G तकनीक की विशेषता क्या है
आप सोचते होंगे कि आखिर 5G में ऐसा क्या है जो इसकी इतनी चर्चा हो रही है। तो हम आपको बता दें कि 4G की तुलना में 5G 100 गुना ज्यादा तेज़ होगा। जहाँ 4G नेटवर्क में हमें 1Gbps की डाउनलोड स्पीड मिलती है वही 5G को 20Gbps की डाउनलोड स्पीड के लिए विकसित किया जा रहा है। यानि की 5G आने के बाद आप दो घंटे की HD फिल्म मात्र तीन से चार सेकण्ड्स में कर सकते है।
5G प्रौद्योगिकी काम कैसे करती है?
यह प्रौद्योगिकी पांच तकनीकों को मिलाकर काम करती है।
मिलीमीटर वेव तकनीक
इस तकनीक की मदद से 5G नेटवर्क 1Gbps की रफ़्तार से डेटा ट्रांसफर कर सकते है। मिलीमीटर वेव बहुत सारा डेटा संचित कर सकते है, जिसकी वजह से इस रफ़्तार को पाया जा सकते है। फिलहाल ऐसी तकनीक अमेरिका में वेरिजॉन AT&T जैसे टेलीकॉम ऑपरेटर उपयोग कर रहे है।
स्पीड सेल्स तकनीक
5G प्रौद्योगिकी का दूसरा आधार स्पीड सेल्स है। मिलीमीटर वेव्स कम दुरी तक यात्रा कर सकते है जिसकी वजह से 5G नेटवर्क में रुकावटें आने लगती है। इस कमी को स्पीड सेल्स के जरिए दूर किया जाता है। इसके लिए मुख्य सेल टावर से सिग्नल रिले करने के लिए बड़ी संख्या में मिनी सेल टावर लगाएं जाते है। इस टावरों को स्पीड सेल की संज्ञा दी गई है। इस छोटे सेल को परंपरागत टावरों की तुलना में कम दूरी पर लगाया जाता है। जिसके फलस्वरूप उपभोगता को बिना रूकावट 5G सिग्नलों की प्राप्ति होती है।
मैक्सिमम मल्टीपल-इनपुट और मल्टीमल आउटपुट तकनीक
5G प्रौद्योगिकी में नेटवर्क ट्रैफिक को प्रबंधित करने के लिए इस तकनीक का उपयोग किया जाता है। इस तकनीक में ट्रैफिक प्रबंधन के लिए बड़े सेल टॉवरों का उपयोग किया जाता है। जहाँ एक सामान्य सेल टावर 12 एंटीना के साथ आता है, वहीं मैक्सिमम मल्टीपल-इनपुट और मल्टीमल आउटपुट तकनीक 100 एंटीना एक साथ नियंत्रित कर सकता है। जिसकी मदद से जरुरत अनुसार 5G टावर की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
बीमफॉर्मिंग तकनीक
5G नेटवर्क की फ्रीक्वेंसी के कई स्रोतों को एक साथ मॉनिटर करने का काम इस तकनीक के जरिए किया जाता है। इस तकनीक का उपयोग करके सिग्नल ब्लॉक होने की स्थिति में अधिक स्पीड वाले टावर पर स्विच किया जा सकता है। साथ ही यह तकनीत सुनिश्चित करती है कि एक खास स्पीड का डेटा सिर्फ एक खास दिशा में ही जाए।
फुल डुप्लेक्स तकनीक
यह एक ऐसी तकनीक है जिसकी मदद से एक समान फ्रीक्वेंसी बैंड में एक साथ डेटा को ट्रांसमिट और रिसीव करने में सहायत मिलती है। यह टू-वे स्ट्रीट की तरह काम करती है, जो दोनों तरफ से सामान डेटा भेजती है।
5G नेटवर्क स्पेक्ट्रम बैंड क्या है
इस तकनीक में मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम का उपयोग किया जाता है। यह तरंगें 30 से लेकर 300 गीगाहर्टज फ्रीक्वेंसी पर काम कर सकती है। मिलीमीटर वेव स्पेक्ट्रम के उपयोग का सर्वप्रथम विचार वर्ष 1995 में जगदीश चंद्र बोस जी ने प्रस्तुत किया था। उन्होंने बताया था कि इसका उपयोग करके संचार को और बेहतर बनाया जा सकता है।
इस तरंगों का उपयोग आधुनिक समय में सैटेलाइट और रडार उपकरणों में किया जाता है। 5G नेटवर्क की नई तकनीक 3400 से लेकर 3600 मेगाहर्ट्ज बैंड्स पर काम कर सकती है। जिसकी वजह से इसमें अच्छी कनेक्टिविटी मिलती है।
5G नेटवर्क तकनीक के क्या लाभ है?
इस नेटवर्क के उपयोग से निम्न लाभ मिलने की उम्मीद है।
इंटरनेट स्पीड में तेज़ी
इस तकनीक में उपभोगताओं को 20Gbps की इंटरनेट स्पीड मिलने की उम्मीद है। जिसकी वजह से इंटरनेट से जुड़े कार्यों को करने में तेजी आ जाएगी। ऑनलाइन डाटा को प्रोसेस और भेजने में समय की बचत होगी। इसके अलावा बड़ी फाइलें जल्दी डाउनलोड या अपलोड हो जाया करेंगी।
मशीन-टू-मशीन संचार
5G तकनीक मशीन-टू-मशीन संचार क्षमता से संपन्न होगी जोकि इंटरनेट ऑफ़ थिंग्स की नीवं है। यह तकनीक ड्राइवरलेस कार, हेल्थ केयर, वर्चुअल रियलिटी, क्लाउड गेमिंग, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आदि का महत्वपूर्ण प्रवर्तक हो सकता है।
अर्थव्यवस्था में योगदान
5G तकनीक ने अभी तक करीब 13.1 ट्रिलियन डॉलर का विश्व स्तर पर व्यवसाय किया है। इसकी वजह से दुनिया भर में करीब 22 मिलियन नई नौकरी की संभावनाएं विकसित हो रही है। भारत सरकार द्वारा नियुक्त पैनल के अनुसार, 5G की सहायत से वर्ष 2035 तक भारत में 1 ट्रिलियन डॉलर का संचयी आर्थिक प्रभाव पैदा होने की उम्मीद है।
इस तकनीक के आ जाने से मशीनों और विभिनी क्षेत्रों में संचार को बढ़ावा मिलेगा। जिससे इनकी दक्षता में वृद्धि होंगी जिसके फलस्वरूप उत्पादन बढ़ेगा और भारत के राजस्व संग्रह में भी बढ़ोतरी होगी।
डिजिटल इंडिया मिशन को लाभ
5G नेटवर्क आ जाने से भारत सरकार के डिजिटल इंडिया मिशन को एक गति प्राप्त होगी। देश के विभिन्न क्षेत्रों को जोड़ने में 5G नेटवर्क एक अहम् भूमिका निभा सकता है। जिससे देश के विकास में तेज़ी आने की सम्भावना है।
5G नेटवर्क भारत में कब शुरू होगी
भारत में 5G प्रौद्योगिकी का शुभारम्भ साल 2021 के अंत तक या फिर साल 2022 के पहली तिमाही में होना संभव है। भारतीय एयरटेल ने भारत में इस तकनीक को विकसित करने के लिए टाटा ग्रुप के साथ वहीं रिलायंस जिओ ने गूगल क्लाउड के साथ समझौता किया है। रिलायंस जिओ ने इस तकनीक का मुंबई में परीक्षण शुरू कर दिया है। भारत में इस सेवा की शुरुआत विशिष्ट कार्यों के लिए किया जाएगा। बाद में इस सेवा का विस्तार आम जनता के लिए होगा।
5G प्रौद्योगिकी के समक्ष चुनौतियाँ
- इस तकनीक के उपयोग के लिए नेटवर्क ऑपरेटर्स को मौजूदा सिस्टम को पूरी तरह से हटाना पड़ेगा। क्यूंकि यह तकनीक 3.5Ghz पर काम करती है जोकि मौजूदा फ्रेक्वेंसी से ज़्यादा है। इसीलिए इस तकनीक को लाना काफी महंगा साबित हो रहा है।
- 5G तकनीक सिग्नल ट्रांसमिशन के लिए मिलीमीटर वेव्स का उपयोग करती है। मिलीमीटर वेव कम दूरी के लिए ही प्रभावी होती है। इसके अलावा यह पेड़ों के द्वारा एवं बारिश के दौरान अवशोषित भी हो सकती है। जिसकी वजह से नेटवर्क की समस्या पैदा हो सकती है। इसके निवारण के लिए नेटवर्क ऑपरेटर्स को बहुत ज्यादा हार्डवेयर लगाने पड़ सकते है।
- 5G तकनीक की तरंगे दीवारों को भेद पाने में असक्षम होती है। जिसके परिणाम स्वरुप इसके नेटवर्क में कमजोरी पाई गई है।
- इस तकनीक में उपयोग होने वाले सब-6 Ghz स्पेक्ट्रम की बैंडविड्थ भी सिमित है। जिसकी वजह से नेटवर्क की समस्या हो सकती है।
- मिलीमीटर वेव के उपयोग की वजह से 5G तकनीक को प्रभावी तरीके से लागु करने के लिए बहुत से हार्डवेयर की जरुरत पड़ रही है। जिसकी वजह से 5G नेटवर्क का विस्तार बहुत धीमा है। अगर मौजूदा दर की बात करें तो 5G नेटवर्क को पूरी तरह से लागु करने में अभी कम से कम 05 वर्ष का समय और लगेगा।
- विश्व के कई लोगों का मानना है कि 5G तकनीक में उपयोह होने वाले तरंगों की वजह से लोगों को घातक बीमारी का सामना करना पड़ सकता है। यहाँ तक की लोग कोरोना वायरस को 5G इस उत्पन्न बता रहे है। परन्तु अभी तक इस विषय में कोई ठोस साक्ष्य उपलब्ध नहीं है।
क्या 5G और 4G एक साथ काम कर सकता है?
2G, 3G और 4G जैसी तकनीक भी वायरलेस बैंड्स पर काम करती है जिनकी फ्रीक्वेंसी 3.5Ghz से 6Ghz के बीच होती है। 5G तकनीक भी भी सब 6Ghz पर काम कर सकती है। परन्तु 3Ghz-6Ghz स्पेक्ट्रम का अधिक उपयोग होने के कारण नेटवर्क की समस्या उत्पन्न हो सकती है। इसके लिए 5G को 6Ghz से आगे 30Ghz-300Ghz फ्रीक्वेंसी पर संचालित करनी की कोशिश की जा रही है। नतीजा जो भी हो फिलहाल 5G और 4G तकनीक बिना एक दूसरे में हस्तक्षेप किये एक साथ काम कर सकती है।
5G प्रौद्योगिकी का कोरोना संबंध
हाल के दिनों में बड़े बड़े सोशल मीडिया मंच से लोगों का कहना था कि कोरोना वायरस संक्रमण 5G तकनीक के परिक्षण का परिणाम है। यह खबर बहुत ही ज्यादा वायरल हो गई। यहाँ तक की बड़े बड़े मंचों पर इस विषय पर अच्छी खासी बहस हुई, जहाँ इस बात का खंडन किया गया।
5G नेटवर्क से जुडी इस खबर का विश्व स्वस्थ संगठन ने भी खंडन किया और कहा कि 5G परिक्षण से किसी घातक परिणाम की अभी तक पुष्टि नहीं हुई है। न ही इस विषय में कोई तथ्य सामने आए है। डब्ल्यूएचओ ने आगे कहा की कोरोना वायरस उन देशों में भी अपने पैर फैला रहा है जहाँ अभी तक 5G तकनीक का परीक्षण शुरू भी नहीं हुआ है। इसीसलिए ये कहना पूरी तरह से गलत होगा की कोरोना वायरस संक्रमण 5G तकनीक की दें है।