होली 2022

होली 2023 में कब है, होलिका दहन शुभ मुहूर्त

‘रंगों के त्यौहार’ के नाम से प्रचलित होली वसंत ऋतु में मनाया जाने वाला हिन्दुओं का एक मुख्य त्यौहार है। हिन्दू पंचांग के अनुसार दो दिवसीय होली के त्यौहार की शुरुवात फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को होती है। भारत के अलावा यह पर्व नेपाल में भी बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। होली भारत का अत्यंत प्राचीन पर्व है जिसको होलिका या होलका नाम से भी जाना जाता है। वसंत ऋतु में हर्षोल्लास के साथ मनाए जाने के कारण इसे वसंतोत्सव और काम-महोत्सव भी कहा जाता है।

रंगों का यह त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन यानि पूर्णिमा को होलिका जलाई जाती है जिसको होलिका दहन भी कहा जाता है। दूसरे दिन यानि कि चैत्र की प्रथमा के दिन रंग खेला जाता है जिसे धुलेंडी व धुरड्डी, धुरखेल या धूलिवंदन आदि नामों से जाना जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे पर रंग, अबीर-गुलाल इत्यादि लगाते है, ढोल बजाकर होल के गीत गए जाते है। लोग एक दूसरे के घर जाकर होली खेलते है।

ऐसी मान्यता है कि होली के दिन लोग अपनी पुरानी कटुता भूलाकर एक दूसरे के गले मिलते है और फिर से दोस्त बन जाते है। लोग दोपहर तक गाते बजाते और रंगों के साथ खेलते है। इसके बाद स्नान करके नए कपड़े पहनकर शाम को एक दूसरे के घर जाकर होली मिलते है और मिठाईयाँ खिलाते है।

होली 2023 में कब है एवं होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या है?

होलिका दहन

त्यौहार होली 2023 की शुरुवात होलिका दहन, जिसे छोटी होली के नाम से भी जाना जाता है , के साथ 07 मार्च को होगी एवं 08 मार्च को धुलेंडी मनाई जाएगी। होलिका दहन का शुभ मुहूर्त व समय नीचे दिया गया है।

होलिका दहन दिन एवं तिथि – मंगलवार, 07 मार्च 2023

होलिका दहन शुभ मुहूर्त – 07 मार्च, शाम 06 बजकर 24 मिनट से रात 08 बजकर 51 मिनट तक
कुल अवधि – 02 घंटा 26 मिनट
भद्रा पूंछ– मध्यरात्रि 12 बजकर 43 मिनट से रात 02 बजकर 01 मिनट तक
भद्रा मुख– रात 02 बजकर 01 मिनट से सुबह 04 बजकर 11 मिनट तक

होली या धुलेंडी दिन एवं तिथि – बुधवार, 08 मार्च 2023
पूर्णिमा तिथि आरम्भ – 07 मार्च, शाम 04 बजकर 17 मिनट से
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 08 मार्च, शाम 06 बजकर 09 मिनट तक

होलिका दहन से जुडी पौराणिक एवं धार्मिक कथा

होली से जुडी पौराणिक एवं धार्मिक कथा

होली से सम्बंधित पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्यकश्यप नाम का एक दानव राजा था। वह अपने आप को भगवान मानता था और सभी से अपनी पूजा करने को कहता। लेकिन उसका स्वं का पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का उपासक था। हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को भगवान विष्णु की उपासना छोड़कर अपनी पूजा करने को कहा। प्रह्लाद ने ऐसा करने से मना करते हुए कहा, पिताजी! परमात्मा ही समर्थ है। प्रत्येक कष्ट से परमात्मा ही बचा सकता है। मानव समर्थ नहीं है। यदि कोई भक्त साधना करके कुछ शक्ति परमात्मा से प्राप्त कर लेता है तो वह सामान्य व्यक्तियों में तो उत्तम हो जाता है, परंतु परमात्मा से उत्तम नहीं हो सकता।

ऐसा जवाब सुनकर अहंकारी हिरण्यकश्यप क्रोधित हो उठा और अपने सिपाहियों के द्वारा प्रह्लाद को साँपों के वन में फेंकवा दिया। परन्तु प्रह्लाद वहां से जीवित वापस लौट आया। इसके बाद हिरण्यकश्यप ने विभिन्न तरीकों से अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने की चेष्टा की लेकिन सफल न हो पाया। इसके अलावा प्रह्लाद की ईश्वर भक्ति से क्रुद्ध हिरण्यकश्यप ने उसे अनेक कठोर दंड दिए, परंतु उसने ईश्वर की भक्ति का मार्ग न छोड़ा।

अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका की मदद से प्रह्लाद को ख़त्म करने का निर्णय लिया। होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप के आदेश पर होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर शैय्या पर बैठ गई। हिरणाकश्यप के सैनिकों ने उसमें आग लगा दी। भगवान विष्णु की कृपा से होलिका तो जल गई परन्तु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तब से प्रभु भक्त प्रह्लाद की याद में होलिका जलाई जाती है। प्रतीक के रूप में यह माना जाता है कि वैर और उत्पीड़न की प्रतीक होलिका (जलने की लकड़ी) जलती है और प्रेम तथा उल्लास का प्रतीक प्रह्लाद (आनंद) अक्षुण्ण रहता है।

होली मनाने का तरीका क्या है?

होली से काफी दिन पहले होलिका दहन की तैयारी शुरू हो जाती है। इसके लिए सबसे पहले किसी सार्वजनिक स्थल या घर के आहाते में झंडा या डंडा गाड़ना होता है। इसके बाद झंडे के चारों तरफ अग्नि के लिए उपले और लकड़ियां एकत्र की जाती है। होलिका में गाय के गोबर से बने उपलों को विशेष रूप से रखा जाता है। देश के कुछ हिस्सों में गाय के गोबर से बने ऐसे उपले जिनके बीच में छेद होता है जिनको गुलरी, भरभोलिए या झाल आदि कई नामों से जाना जाता है, के छेद में मूँज की रस्सी डालकर उसकी माला बनाकर उसको जलाया जाता है।

होलिका दहन से पहले होलिका का विधिवत पूजन किया जाता है। इस दिन लोग घरों में खीर, पूरी आदि पकवान बनाकर उसका होलिका को भोग लगाते है। दिन ढलने पर शुभ मुहूर्त पर होलिका दहन किया जाता है। इसी होलिका से आग ले जाकर लोग घरों के आँगन में रखी निजी पारिवारिक होलिका में आग लगाते है। होलिका की आग में गेहूँ, जौ की बालियों और चने के होले को भी भुनने की परंपरा है।

दूसरे दिन सुबह से ही लोग रंगो के त्यौहार होली को मनाते है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंगों, अबीर-गुलाल इत्यादि लगाते है, ढोल बजाकर होल के गीत गए जाते है और घर-घर जाकर लोगों को रंग लगाया जाता है। गुलाल और रंगों से ही मित्रों एवं रिश्तेदारों का स्वागत किया जाता है। इस दिन लोग टोलियां बनाकर नाचते-गाते और रंग लगाते है।

होली के अवसर पर सबसे अधिक आनंद बच्चों को आता है। बच्चे रंग-बिरंगी पिचकारी लेकर सब पर रंग डालते भागते दौड़ते मजे करते है। “होली है…” कहते हुए बच्चे पूरे मोहल्ले में भागते नजर आते है। एक दूसरे को रंग लगाने और गाने-बजाने का दौर दोपहर तक चलता है। इसके बाद लोग स्नान करके शाम को एक दूसरे के घर मिलने जाते है, गले मिलते है और मिठाईयाँ खिलाते है।

भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होली का उत्सव

होली का त्यौहार भारत के कई क्षेत्रों में मनाया जाता है। मथुरा और वृन्दावन में 15 दिनों तक होली का त्यौहार मनाया जाता है। ब्रज और बरसाने की होली का अपना अलग आकर्षण है। बरसाने की लठमार होली काफ़ी प्रसिद्ध है। इसमें पुरुष महिलाओं पर रंग डालते है और महिलाएं पुरषों को लाठियों एवं कपड़े से बने कोड़ों से मारती है।

कुमाऊँ में होली पर शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियाँ आयोजित की जाती हैं। हरियाणा धुलंडी में भाभी द्वारा देवर को सताए जाने की प्रथा है। पंजाब में होली के अवसर पर होला मोहल्ला में सिक्खों द्वारा शक्ति प्रदर्शन की परंपरा है। बंगाल में होली चैतन्य महाप्रभु के जन्मदिन के रूप में मनाई जाती है। इस दिन बंगाल में गाजे बाजे के साथ दोल यात्रा निकली जाती है।

महाराष्ट्र में होली को रंग पंचमी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग एक दूसरे को गुलाल लगाते है। गोवा के शिमगो में जलूस निकालने और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन की प्रथा है। तमिलनाडु की होली कमन पोडिगई नाम से जानी जाती है जोकि मुख्य रूप से कामदेव की कथा पर आधारित वसंतोतसव है।

दक्षिण गुजरात के आदिवासिओं के लिए होली सबसे बड़ा पर्व है। छत्तीसगढ़ की होली में लोक गीतों की अद्भुत परंपरा है। मध्यप्रदेश के मलावा अंचल के आदिवासी इलाकों में होली का त्यौहार भगोरिया नाम से बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। बिहार में होली को फगुआ कहा जाता है। इस दिन बिहार के लोग बहुत मौज-मस्ती करते है। इसके अलावा भी भारत के लगभग सभी राज्यों में होली किसी न किसी रूप में मनाई जाती है।

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